काकरा। गोवा में मछुआरों के गांव काकरा गांव में इन दिनों गणेशोत्सव की धूम मची हुई है। इस गांव में ईसाई धर्म के कैथोलिक पंथ और हिंदू रीति-रिवाज का मानो विलय हो गया है। विशेषज्ञ इसे ‘नव हिंदुत्व’ नाम दे रहे हैं। वैसे भी हिंदू धर्म उदार है और इसमें सभी पंथों व मतों के मानने वालों के प्रति सम्मान व आदर पर जोर दिया जाता है।
एक न्यूज एजेंसी की टीम जब काकरा गांव के निवासी संजय परेरा के आवास पर पहुंची तो वहां वे ‘लेडी ऑफ वेलंकन्नी’ की प्रतिमा के साथ भगवान गणेश की प्रतिमा की पूजा करते नजर आए। ऐसा करने वाले वे अकेले नहीं थे, मछुआरों के इस गांव में कैथोलिक विरासत और हिंदू रीति-रिवाज का अद्भुत मिश्रित रूप नजर आया। परेरा ने कहा कि हमारे लिए भगवान गणेश और लेडी ऑफ वेलंकन्नी की पूजा-प्रार्थना में कोई अंतर नहीं है। लेडी ऑफ वेलंकन्नी कैथोलिकों द्वारा पूजी जाने वाली वर्जिन मैरी का ही एक रूप है।
लगभग 50 साल पहले गोवा पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त हुआ था। इसके एक दशक बाद पणजी के पास स्थित मछुआरों के इस गांव के लोगों ने ईसाई धर्म त्याग कर फिर हिंदू धर्म अपनाया लिया है। धीरे-धीरे इस गांव के लोगों ने अपने कैथोलिक उपनामों को हिंदू नामों में बदलना चालू कर दिया। हालांकि वे दोनों धर्मों की परंपराओं का पालन और सम्मान समान रूप से करते हैं। परेरा ने कहा कि गणेशोत्सव के दौरान हम पांच दिनों तक समुद्र से मछलियां नहीं पकड़ते। हमारे गांव के लगभग हर घर में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है।
संजय परेरा की तरह ही गणेश परेरा भी गणेश पूजा करते दिखे। उन्होंने अपना सरनेम परेरा से बदलकर फातरपेकर कर लिया है। उन्होंने बताया कि उनके परिवार ने 1971 में गणेश उत्सव मनाना शुरू किया था। 51 साल के फातरपेकर ने याद करते हुए कहा कि हम हिंदू धर्म में लौट आ थे। इसके बाद मेरे पिता ऑगस्टीन परेरा गणेश चतुर्थी के दौरान भगवान गणेश की प्रतिमा घर पर लाए थे। जिस साल से उनके पिता ने गणेश उत्सव मनाना शुरू किया, उसी वर्ष की याद में फातरपेकर का नाम गणेश रखा गया। इसके बाद तो गांव में ज्ञान और बुद्धि के दाता भगवान गणेश की प्रतिमाएं घर-घर में विराजित की जाने लगीं।
450 की आबादी वाला काकरा गांव आजीविका की दृष्टि से मछली पकड़ने पर ही निर्भर है। गांव के लोगों ने 2010 में सतेरी रावलनाथ को समर्पित एक मंदिर का निर्माण किया। यहां दीवार पर होली क्रॉस भी बना है। इसी मंदिर में पूजा के बाद अपनी डोंगी के साथ गांव के लोग समुद्र में मछली पकड़ने निकलते हैं।
काकरा के एक अन्य निवासी 60 साल के दत्ता पालकर ने बताया कि कैसे उन्होंने जेरोम जोस मार्टिन्स से अपना नाम बदलकर दत्ता पालकर रखा। उन्होंने कहा कि कई लोगों ने अपना नाम और उपनाम बदल लिया है। गोवा के शोधकर्ता सुनील पालकर ने बताया कि हिंदू संत विनायक महाराज ने 1961 में गोवा के पुर्तगालियों से मुक्त होने के बाद काकरा, नौक्सिम, चिंबेल, सांताक्रूज और तलेइगाओ जैसे गांवों के कई आदिवासियों को हिंदू धर्म में परिवर्तित कराया था। पालकर ने कहा कि हिंदू धर्म को फिर से अपनाने के बाद, लोगों ने पुराने रीति-रिवाजों का पालन करना शुरू कर दिया।
गोवा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामराव वाघ ने कहा कि 1960 और 70 के दशक के अंत में कई लोगों को नियो हिंदू (नव हिंदू) कहा जाता था। उन्होंने कहा कि परेरा, मार्टिन, रोसारियो, डीसूजा, डी’मेलो, कैबरल और एंड्रेड जैसे सरनेम काकरा, नौक्सिम, बम्बोलिम, तलेइगाओ, सेंट क्रूज़ और अन्य क्षेत्रों के गांवों में आम हैं।