नववर्ष में नवचेतना के विस्तार के लिए कतर्नियाघाट वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र और यहां के आसपास की रमणीक व नयनाभिराम छंटाओं का अवलोकन अवश्य कीजिए। यहां के जंगल और जल विहार से, बेजोड़ अनुपम, अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य से आप में नवउमंग, नवउल्लास और नवस्फूर्ति का संचार होगा। जब आप प्रकृति से सहचर्य और सामंजस्य स्थापित कर लेंगे तो तन-मन को असीम शांति और ऊर्जा मिलेगी।
गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अवस्थित बहराइच जनपद, उत्तरप्रदेश के सबसे पुराने जनपदों में से एक है। जहां पड़ोसी और मित्र देश नेपाल से सटे भारतीय भू-भाग में अवस्थित बड़े और घने जंगल, जिनके एक बड़े हिस्से पर कतर्नियाघाट अभ्यारण्य क्षेत्र अवस्थित है, में वन आखेट यानी जंगल सफारी और समीप में ही बहने वाली घाघरा (गेरूआ और कर्णाली नामक नेपाल से आने वाली नदियों के सम्मिलन से बनी) और सरयू नदियों एवं इन पर बने आधुनिक बैराज में जल आखेट यानी जल विहार या जल सफारी के उपलब्ध संसाधन आपको जैव विविधताओं का दीदार करवाते हुए आनंदित कर देंगे।
मेरी राय है कि इनके बारे में जानना, समझना और लोगों को समझाने का प्रयत्न करके इन्हें प्राकृतिक रूप से संरक्षित रखने का प्रयास करना हरेक प्रबुद्ध व्यक्ति का मानव धर्म है। प्राणिमात्र के प्रति अद्भुत संकल्प है। क्योंकि यह विकसित प्रवृति ही दुनियामात्र की सतत जारी सेवा में किसी अंशमात्र योगदान जैसा ही सही, पर निश्चय ही होगा। इससे आपके चिंतन, मनन और दर्शन की अवधारणा का भी समग्र विकास होगा। इससे देर सबेर पूरी मानवता अनुप्राणित होगी।
बताते चलें कि कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य उत्तर प्रदेश, भारत में ऊपरी गंगा के मैदान में एक संरक्षित क्षेत्र है और बहराइच जिले के तेराई में 400.62 किमी (154.7 वर्ग मील) के एक क्षेत्र शामिल हैं। वर्ष 1987 में, इसे ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के दायरे के तहत लाया गया था, और किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के साथ यह दुधवा टाइगर रिजर्व का निर्माण करता है। यह 1975 में स्थापित किया गया था।
कतर्नियाघाट वन भारत में दुधवा और किशनपुर के बाघ के निवास और नेपाल में बर्दिया राष्ट्रीय उद्यान के बीच सामरिक संपर्क प्रदान करता है। इसकी नाजुक तेराई पारिस्थितिकी तंत्र में सैल और सागौन के जंगलों, प्रचुर घास के मैदानों, कई दलदलों और नलिकाओं का मोज़ेक शामिल है। यह कई लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है, जिनमें घिरील, शेर, गेंदे, गंगा के डॉल्फिन, दलदल हिरण, हेपीड खरगोश, बंगाल फ्लोरिकन, सफेद बैकड और लंबे समय से बिल गिल्ट आदि शामिल हैं।
गहरील को अपनी प्राकृतिक निवास स्थान में देखने के लिए दुनिया में सबसे अच्छे स्थानों में से एक गेरुआ नदी है, जहां यह मगरमच्छ के साथ सहानुभूति पूर्वक पाया जाता है। इस खंड में घनेलीस की आबादी उन तीन में से एक थी जो अब भी प्रजनन करते थे, जब इस सरीसृप को विलुप्त होने के कगार से बचाने के लिए प्रोजेक्ट को 1975 में शुरू किया गया था। हालांकि, 2001 और 2005 के वर्षों के बीच, लगभग सभी घरेलू घोंसले आदिवासियों द्वारा छापा मारा गया, जो उन्हें एक विनम्रता मानते हैं।
वहीं, गेरुआ नदी में छोटी संख्या में मगर मगरमच्छ भी देखे जाते हैं, क्योंकि उनके पसंदीदा हंट स्थिर जंगलों हैं, जैसे कई तालों और बागारों, जो अभयारण्य को डॉट करता है। गहरे रंग की तरफ से तैरती तलहों की तरफ से गंगा डोल्फ़िन को फुलते हुए देखा जा सकता है।
वहीं, कतर्नियाघाट (अपभ्रंश नाम कटेरीयाघाट भी) के हेर्पेटाफाउना में हाल की खोज बहुत ही आकर्षक हैं और कई प्रजातियों जैसे कि बांड़े क्रेट, बर्मा रॉक अजगर, पीले धब्बेदार भेड़िया-सांप और स्वर्ग उड़ान सांप जैसे कई प्रजातियों के द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है। 2012 में, एक दुर्लभ लाल मूंगा कुक्री सांप अभयारण्य में देखा गया था। वैज्ञानिक नाम ओलिगोडोन क्रेरीनेसिस के साथ इस साँप को पहली बार 1936 में उत्तर खेरी डिवीजन से वर्णित किया गया था। इस परियोजना में टाइगर रिजर्व वर्ष 2005 में संरक्षवादियों द्वारा लिखे गए थे, जब रमेश के. पांडे ने अभयारण्य का प्रभार संभाला और चीजों को बदल दिया। आपने प्रशंसनीय कार्य के साथ आरक्षित में निवास और बाघ की आबादी के आसपास और बहाल किया।
वहीं, घाघरा नदी (तिब्बत/नेपाल की कर्णाली नदी) तिब्बत, नेपाल होते हुए भारत में बहने वाली एक नदी है। तिब्बत में इसे मापचाचुंगो हिमानी नदी कहा जाता है, जिसका उद्गम स्थान मानसरोवर झील, तिब्बत के समीप है, जो 3,962 मी॰ (12,999 फीट) की ऊंचाई पर अवस्थित है। यह दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत शिखरों (हिमालय) से मानसरोवर झील के समीप से निकलती है। वहाँ से यह नेपाल में प्रवेश करती है, जहाँ इसका नाम कर्णाली है। इसके बाद नेपाल से निकलने वाली गेरूआ और कर्णाली नदी भारत में मिलकर घाघरा बन जाती हैं। यह भारत के उत्तर प्रदेश होकर बिहार तक प्रवाहित होती है। लगभग 970 किमी की यात्रा के बाद बलिया और छपरा के बीच यह गंगा में मिल जाती है। इसलिए इसे गंगा नदी की एक प्रमुख उपनदी समझा जाता है। बता दें कि घाघरा बैराज व उसके आसपास उपलब्ध जल विहार के मौके और रमणीक वन तट क्षेत्र आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे।
घाघरा के किनारे उत्तरप्रदेश के बहराइच और बाराबंकी जनपद के बसे हुए क्षेत्र को गांजर क्षेत्र भी कहा जाता है ऐसा माना जाता है कि यह क्षेत्र एक सांस्कृतिक रूप से और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ क्षेत्र है। यहां विभिन्न भाषाई और सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है। यह बहराइच, सीतापुर, गोंडा, बाराबंकी, अयोध्या, टान्डा, राजे सुल्तानपुर, दोहरी घाट, बलिया आदि शहरों के क्षेत्रों से होकर गुजरती है। जहां जल विहार, चौर क्षेत्र व दियारा विहार की असीम संभावनाएं मौजूद हैं, जिन्हें पर्यटकीय दृष्टि से और अधिक समृद्ध किये जाने की जरूरत है।
वहीं, सरयू नदी पर मोतीपुर तहसील (बहराइच जनपद) में बने गोपिया बैराज और उससे निकलने वाली नहरें भी आपको सम्मोहित कर लेंगी। इसलिए यदि आप इन चीजों में अभिरुचि रखते हैं। इन्हें बड़े ही करीब से देखना और समझना चाहते हैं तो 15 जून से 14 नवम्बर की वार्षिक बन्दी अवधि (जंगल सफारी/जल सफारी) को छोड़कर अवश्य आइये। शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन, दोनों मौसम आपको कुछ अलग अलग रमणीक अनुभव देंगे, ऐसा मैं अनुभव कर चुका हूं।
जानिए, यहां पर कैसे पहुंचेंगे आप
हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा अमौसी, लखनऊ, (राजधानी, उत्तरप्रदेश) है, जहां से 215 किमी आगे जाने हेतु आपके पास रेल मार्ग या सड़क मार्ग का प्रयोग करना होगा।
यदि आप ट्रेन द्वारा यहां जाना चाहेंगे तो कतर्नियाघाट अभयारण्य में रेलवे स्टेशन- ककरहा, मूर्तिहा, निशंगाराह और बिछिया में अवस्थित हैं, जो कि एनईआर के गोंडा-बहराइच शाखा रेलवे लाइन (मीटर गेज) पर स्थित हैं। कतार्नियाघाट गोंडा से भी हो कर जाया जा सकता है, जो कि लखनऊ से गोरखपुर तक की मुख्य रेलवे लाइन पर स्थित है।
वहीं, यदि आप सड़क के द्वारा यहां जाना चाहेंगे तो कतर्नियाघाट अभयारण्य लखनऊ से 205 किमी की दूरी पर स्थित है, बहराइच से 60 किमी दूर नानपारा मार्ग पर और नेपाल बोर्डर से लगभग 7 किमी दूर है। कतर्नियाघाट जाने का सबसे अच्छा तरीका लखनऊ से सड़क होकर है। कतर्नियाघाट डब्लूएलएस की पहली श्रृंखला- मोतीपुर सीतापुर और लखनऊ के शहरों के माध्यम से लखनऊ से लगभग 205 किमी दूर है। लखीमपुर से आने पर मिहींपुरवा तक बहराइच की ओर “असम रोड” लेना पड़ता है, जहां एक वन विभाग का बैरियर कतर्नियाघाट में आने के लिए पड़ता है। इनसे यहां पहुंचना सुगम्य और सुदर्शनीय है।