आंध्र प्रदेश इस समय बिजली संकट से जूझ रहा है। खबर है कि राज्य के थर्मल पावर स्टेशन में कोयला की कमी के चलते यह संकट खड़ा हुआ है। वहीं, अधिकारियों का मानना है कि कोविड-19 के बाद अचानक बढ़ी मांग ने यह परेशानी खड़ी कर दी है। हालात यह हो गए हैं कि राज्य में बिजली को विनियमित करने पर मजबूर होना पड़ा है। हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि राज्य के कई हिस्सों में लोग 4-6 घंटे बिजली कटौती का सामना कर रहे हैं। विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
द न्यूज मिनट के अनुसार, पावर रेग्युलेशन के चलते सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान और नागरिक परेशान हो रहे हैं। इधर, बिजली की बढ़ी दरों ने भी परेशानियों में इजाफा किया है। राज्य में बिजली की कीमत 60 प्रतिशत बढ़ गई हैं। इसके अलावा टैरिफ में 1.40 रुपये प्रति यूनिट (76 से 125 यूनिट के लिए) और 1.57 रुपये (126 से 220 यूनिट) के लिए बढ़ गए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री काला वेंकट राव के अनुसार, कीमतों में इजाफा होने के चलते नागरिकों पर 16 हजार 611 करोड़ रुपये का भार पड़ेगा।
राज्य में बिजली संकट इस कदर बढ़ा हुआ है कि उद्योगों को शुक्रवार से बिजली अवकाश पर भेज दिया है। 24 घंटे काम करने वाले उद्योगों को केवल जरूरत का 50 फीसदी इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है। अधिसूचना के अनुसार, सभी उद्योगों को वर्किंग डे 5 दिन करने के लिए कहा गया है।
जिन सरकारी अस्पतालों में पावर जनरेटर नहीं है, वहां हालात ज्यादा खराब नजर आ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इस सप्ताह अनाकपल्ली जिला के नरसीपाटनम सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों को सेल फोन की फ्लैशलाइट की मदद से डिलीवरी करनी पड़ी, क्योंकि अस्पताल में करीब 8 घंटे से बिजली गायब थी।
बीते साल अक्टूबर में मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने केंद्र से केंद्र सरकार से मामले में दखल देने की मांग की थी। उन्होंने बिजली की मांग पूरी करने के लिए सरकार से कोयला के 20 रैक मांगे थे। इधर, भाजपा ने बिजली संकट के लिए केंद्र सरकार की नीतियों पर आरोप लगाने के चलते राज्य सरकार पर नाराजगी जाहिर की है।