देहरादून । देहरादून में आयोजित आपदा प्रबंधन वैश्विक सम्मेलन के तीसरे दिन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने स्पष्ट और प्रभावशाली शब्दों में कहा कि यदि मानवता को आपदाओं से सुरक्षित रखना है, तो सिर्फ चर्चा, दस्तावेज़ और योजनाएँ पर्याप्त नहीं होंगी; इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को सचमुच का ‘आपदा योद्धा’ बनना होगा। उनके अनुसार आपदाओं से बचाव कोई दान या दूसरों पर छोड़ी जाने वाली ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि यह एक सामूहिक कौशल है, जिसे नागरिकों को सीखना, अपनाना और समय आने पर बिना झिझक इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपदा हमें हमेशा सिखाकर जाती है—हम देखते हैं, समझते हैं और उसके बाद जब तैयारी को व्यवहार में लाते हैं तभी हम आपदा का मुकाबला करने में सक्षम बनते हैं।
राजेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। समुद्री तूफानों को लेकर उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि देश ने हाल के वर्षों में लगातार 10 बड़े चक्रवातों का सामना किया, और इन सभी में एक भी जीवनहानि न होना इस बात का प्रमाण है कि भारत की तैयारी विश्वस्तरीय मानकों तक पहुँच चुकी है। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि केवल तकनीकी प्रगति की नहीं, बल्कि समुदाय आधारित प्रशिक्षण, समय पर Evacuation, मौसम पूर्वानुमान की सटीकता और त्वरित समन्वय जैसे तत्वों का संयुक्त परिणाम है।
सम्मेलन में उपस्थित विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य की आपदाएँ और जटिल होंगी—चाहे जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न बाढ़ हों, पर्वतीय क्षेत्रों में भू-स्खलन हों, सूखे का विस्तार हो या अचानक आने वाले भूकंप। ऐसी परिस्थितियों में केवल सरकारी तंत्र पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि स्थानीय जनता को प्रशिक्षित करना, स्कूलों में आपदा शिक्षा को अनिवार्य बनाना, हर घर में प्राथमिक तैयारी किट तैयार रखना और सामुदायिक चेतना को मजबूत करना अत्यंत आवश्यक है।
राजेंद्र सिंह ने कई उदाहरणों का उल्लेख करते हुए बताया कि आपदा प्रबंधन का वास्तविक उद्देश्य केवल राहत वितरण नहीं, बल्कि आपदा से पहले की तैयारी और आपदा के बाद की तेज़ रिकवरी है। उन्होंने कहा कि यदि हर व्यक्ति अपने स्तर पर तैयार हो जाए—आसपास के जोखिमों को समझे, चेतावनी तंत्र को जाने, प्राथमिक उपचार सीखे, सुरक्षित मार्ग पहचान ले—तो किसी भी बड़े संकट में जनहानि को लगभग शून्य किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को आपदा प्रबंधन में एक वैश्विक लीडर की भूमिका निभानी चाहिए और अपने अनुभव दुनिया के अन्य संवेदनशील देशों के साथ साझा करने चाहिए।
इस वैश्विक सम्मेलन के तीसरे दिन की गतिविधियों में विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत शोधपत्र, आपातकालीन स्थिति में प्रौद्योगिकी के उपयोग, समुदाय आधारित प्रशिक्षण मॉडल, और पर्वतीय राज्यों में बढ़ती संवेदनशीलता पर विशेष चर्चा शामिल रही। प्रतिभागियों ने राजेंद्र सिंह के वक्तव्य को न केवल प्रेरक बताया, बल्कि यह भी माना कि आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रखने के लिए यह दृष्टिकोण अनिवार्य है। उनके संबोधन ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया कि आपदा एक प्राकृतिक चुनौती हो सकती है, लेकिन तैयारी पूरी मानवता को अजेय बना सकती है।
