बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भारतीय जनता पार्टी से नाता तोड़ने के बाद, एक बार फिर उन्हें कुछ लोगों द्वारा 2024 के आम चुनाव में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कहा जाने लगा है। लेकिन ज्यादातर विपक्षी दल अब भी जद (यू) नेता को उनके कई ‘यू-टर्न’ के मद्देनजर संदेह की नजर से देखते हैं। विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा रखने वाले नेताओं में से एक हैं और इनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हैं।
राज्यसभा सदस्य चतुर्वेदी ने कहा, “नीतीश कुमार एक ऐसे हयोगी रहे हैं, जो अक्सर अपना मन बदलते रहते हैं। एक चीज उनके खिलाफ है, वह है भरोसा…।’’ उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे भी भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़े रहे और बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान खासकर कोविड-19 महामारी के समय स्वच्छ प्रशासन दिया। उन्होंने कहा, “विपक्ष में कई योग्य नेता हैं और यह 2024 में देखा जाएगा कि चीजें किस प्रकार आकार लेती हैं।”
राकांपा नेता मजीद मेमन ने कहा कि नीतीश कुमार, शरद पवार और ममता बनर्जी सहित उन कुछ लोगों में से एक हो सकते हैं, जिन्हें 2024 में प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार के रूप में देखा जा सकता है। राज्यसभा के पूर्व सदस्य मेमन ने कहा, “कुछ क्षेत्रीय नेता हैं। नीतीश कुमार भी उनमें से एक हैं। निश्चित रूप से, वह एक दावेदार हैं। लेकिन अंतत: यह एक सर्वसम्मत फैसला होगा कि भाजपा को कौन चुनौती देगा। कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे जद (यू) के पूर्व नेता आरसीपी सिंह ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री भले ही सात जन्म ले लें, लेकिन वह कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे।
भाजपा के राज्यसभा सदस्य विवेक ठाकुर ने नीतीश कुमार के राजग से बाहर जाने को ‘छुटकारा मिलना’’ करार दिया। उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा की कोई सीमा नहीं है। वह न तो बिहार और न ही अपनी पार्टी के लिए काम करते हैं, वह केवल अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए काम करते हैं। उन्होंने 2017 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नीत महागठबंधन को छोड़ दिया था और फिर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत गठबंधन में शामिल हो गए थे। कई लोगों के लिए यह महाराष्ट्र में हुई घटनाओं का दोहराव है जहां शिवसेना-कांग्रेस-राकांपा सरकार को हटाकर भाजपा ने शिवसेना से बगावत करने वाले विधायकों के साथ सरकार बना ली।
मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज के पूर्व प्रोफेसर व राजनीति विज्ञान के जाने माने विशेषज्ञ रणबीर समद्दर ने कहा, “बिहार महाराष्ट्र के सिक्के का दूसरा पहलू बन गया है।” धर्मनिरपेक्ष समाजवादी मंच को छोड़ कर दक्षिणपंथी पार्टी के साथ जाने और बाद में उसे भी छोड़ कर वापस आने जैसे कदमों से नीतीश कुमार की सुशासन वाले व्यक्ति के रूप में छवि भले ही प्रभावित हुई हो लेकिन असंभव को संभव करने की उनकी राजनीतिक क्षमता निश्चित रूप से कम नहीं हुई है। सीपीआईएमएल (एल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, “अगर वह अपने नए कदम के साथ उस गति को कायम रखते हैं… तो बिहार में 2024 का आम चुनाव भाजपा के लिए संघर्ष का वास्तविक मैदान साबित होगा, जहां 40 महत्वपूर्ण सीटें हैं।’’
रिकॉर्ड आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे नीतीश कुमार (71) ने अपना सफर बिहार विद्युत बोर्ड में एक इंजीनियर के रूप में शुरू किया था और बाद में वह समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के तहत राजनीति में शामिल हो गए और 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में भाग लिया। समाजवादी पार्टी के कई विभाजन और विलय के बाद, नीतीश कुमार ने जनता दल (यूनाइटेड) का गठन किया। जद (यू)-भाजपा गठबंधन ने बिहार में समाजवादी लालू प्रसाद के राजद के लंबे शासन को समाप्त करने की कोशिश की और मार्च 2000 में, नीतीश कुमार पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।
पिछड़े कुर्मी समुदाय से आने वाले नीतीश कुमार को 2005 में फिर से मुख्यमंत्री चुना गया और इस बार उनके पास सरकार में बने रहने के लिए पर्याप्त संख्या थी। ‘सुशासन बाबू’ के रूप में मशहूर कुमार ने पिछड़े राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार किया। उन्होंने राज्य के बुनियादी ढांचे और शैक्षणिक संस्थानों में भी सुधार किया। राजग के मुख्यमंत्री के रूप में तीन कार्यकाल के बाद, नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और 2015 में अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद की पार्टी राजद और कांग्रेस से हाथ मिला लिया। हालांकि यह गठबंधन 2017 तक चला और वह महागठबंधन को छोड़कर वापस राजग में शामिल हो गए। जाहिर सी बात है कि अब पुरानी कहानी फिर से दोहराई जा रही है।