देहरादून। सरकारी सेवा को जागीर समझने वाले अधिकारियों के लिए अनिल कुमार की बर्खास्तगी कड़ा संदेश है। भले ही अनिल कुमार पर शिकंजा कसने में विभाग को लंबा समय लग गया, लेकिन सच की जीत हो ही गई।
दरअसल, अपने क्रियाकलापों के चलते राज्य कर अधिकारी विभाग के लिए सिरदर्द बन गया था। विभाग के तमाम आयुक्तों ने अनिल कुमार को सुधरने का पूरा समय दिया, नियमों का पाठ भी पढ़ाया, लेकिन सीधी राह पर आने की जगह अनिल कुमार ने अधिकारियों पर ही भ्रष्टाचार के आरोप मढ़ डाले थे।
यहां तक कि अनिल कुमार के ही एक करीबी व्यक्ति ने विभाग पर सालाना 10 हजार करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। हालांकि, इसका हश्र यह हुआ कि कोर्ट ने न सिर्फ याचिका को आधारहीन करार दिया, बल्कि याचिका दायर करने वाले व्यक्ति पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगा दिया।
अनिल कुमार जहां भी रहा, विभाग के लिए परेशानी का सबब बनता रहा। यहां तक कि हरिद्वार में संयुक्त आयुक्त की अनुपस्थिति में उनके कार्यालय में जबरन घुस गया था और कई फाइलों के साथ छेड़छाड़ भी कर डाली। अल्मोड़ा में तैनाती के दौरान उसकी हरकतों के परेशान होकर वहां के जिलाधिकारी ने विभाग को पत्र लिखकर अनिल कुमार को हटाने की संस्तुति कर दी थी।
इसके अलावा रुद्रपुर, काशीपुर आदि जगह की तैनाती में भी अनिल कुमार का नाम किसी न किसी विवाद के साथ जुड़ता रहा। इसके चलते अनिल कुमार को पूर्व में भी एक बार निलंबित किया गया था और तब माफी मांगने पर प्रतिकूल प्रविष्टि के साथ बहाल कर दिया था। इसी क्रम में अनिल कुमार को एक मौका देते हुए अधिकारियों ने आशारोड़ी में फील्ड की तैनाती दे दी थी।
हालांकि, यह आते ही अनिल कुमार पुराने रंग में लौट आया और घूसखोरी के कांड को अंजाम दे दिया। जागरण के माध्यम से यह प्रकरण न सिर्फ बाहर आया, बल्कि बर्खास्तगी का आधार भी बना। प्रकरण को उजागर करने के बाद विभागीय उच्चाधिकारियों ने जागरण का आभार भी व्यक्त किया था।