
लोकेन्द्र सिंह
बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर द्वारा की गईं हिन्दू धर्म की आलोचनात्मक टीकाओं को खूब उभारा जाता है, इसके पीछे की मंशा ठीक नहीं होती। बाबा साहेब ने हिन्दू धर्म में व्याप्त जातिप्रथा, जातिगत भेदभाव और उसके लिए जिम्मेदार प्रसंगों की आलोचना की, उसके मानवीय कारण हैं। उनकी आलोचनाओं को हिन्दू समाज ने स्वीकार भी किया क्योंकि उन आलोचनाओं के पीछे पवित्र नीयत थी।
किन्तु जो लोग हिन्दू धर्म को लक्षित करके नुकसान पहुँचाने के लिए बाबा साहेब के कंधों का दुरुपयोग करने का प्रयत्न करते हैं, वे भूल जाते हैं कि बाबा साहेब ने सिर्फ हिन्दू धर्म की कमियों की ही आलोचना नहीं की, बल्कि उन्होंने ईसाई और इस्लाम संप्रदाय को भी उसके दोषों के लिए कठघरे में खड़ा किया है।
‘बहिष्कृत भारत’ में 1 जुलाई, 1927 को लिखे अपने लेख ‘दु:ख में सुख’ में बाबा साहेब लिखते हैं- “ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि प्रकार के भेद सिर्फ हिन्दू धर्म में ही हैं, ऐसी बात नहीं, बल्कि इस तरह के भेद ईसाई और इस्लाम में भी दिखाई देते हैं”।
इस्लाम पर तो बाबा साहेब ने खूब कलम चलाई है। परंतु यहाँ तथाकथित प्रगतिशील बौद्धिक जगत एवं अन्य लोगों की बौद्धिक चालाकी उजागर हो जाती है, जब वे इस्लाम के संबंध में बाबा साहेब के विचारों पर या तो चुप्पी साध जाते हैं या फिर उन विचारों पर पर्दा डालने का असफल प्रयास करते हैं। आज बाबा साहेब होते तो वे निश्चित ही ‘भीम-मीम’ का खोखला, झूठा और भ्रामक नारा देने वालों को आड़े हाथों लेते।
इस्लाम के विषय पर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का गहरा अध्ययन था। दरअसल, उन्होंने जब हिन्दू धर्म छोडऩे की घोषणा की तो उसके बाद उन्होंने सिख, इस्लाम, ईसाई और बौद्ध धर्म का बहुत अध्ययन किया। जब तक उन्होंने इस्लाम का अध्ययन नहीं किया था, तब तक अवश्य ही उन्होंने एक-दो बार हिन्दुओं को चेतावनी देने के लिए कहा कि अस्पृश्य वर्ग के लोग इस्लाम स्वीकार करें, तो यही सवर्ण हिन्दू उन्हें गले लगाने लग जाएंगे।
‘बहिष्कृत भारत’ के 15 मार्च, 1929 के अंक में तो उन्होंने एक लेख ही लिख दिया था, जिसमें उन्होंने अस्पृश्य वर्ग को कह दिया कि यदि हिन्दू धर्म में रहते हुए आपको सम्मान एवं समान अधिकार नहीं मिल रहे और आपको धर्म परिवर्तन ही करना हो तो मुसलमान हो जाईए। परंतु जैसे-जैसे बाबा साहेब इस्लाम का अध्ययन करते गए, इस्लाम के प्रति उनकी दृष्टि बदल गई। उसके बाद उन्होंने अस्पृश्य वर्ग के बंधुओं को समझाना शुरू किया कि मुसलमान बनने पर हम भारतीयता की परिधि से बाहर चले जाएंगे, हमारी राष्ट्रीयता संदिग्ध हो जाएगी।
इसके साथ ही बाबा साहेब यह भी मानते थे कि “यदि वे इस्लाम स्वीकार करते हैं तो मुसलमानों की संख्या इस देश में दूनी हो जाएगी और मुस्लिम प्रभुत्व का खतरा उत्पन्न हो जाएगा”। अर्थात् बाबा साहेब मुसलमानों की बढ़ती संख्या को देश के लिए संकट के तौर देखते थे। इसलिए बाबा साहेब ने न केवल समय-समय पर इस्लाम की आलोचना की है, बल्कि अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण करने के सभी प्रकार के प्रयासों का भी विरोध किया है।
18 जनवरी, 1929 को ‘नेहरू कमेटी की योजना और हिन्दुस्थान का भविष्य’ इस शीर्षक से उनका एक अग्रलेख ‘बहिष्कृत भारत’ में प्रकाशित हुआ है। कांग्रेस के अग्रणी नेता मोतीलाल नेहरू ने भारत के भावी संविधान का एक मसौदा प्रस्तुत किया। कांग्रेस के प्रचार तंत्र के जरिये जोर-शोर से यह बताया जा रहा था कि नेहरू कमेटी समिति का यह मसौदा कितना अच्छा है। जबकि बाबा साहेब ने इस मसौदे की विवेचना करके बताया कि नेहरू समिति की योजना देश के लिए घातक है।
बाबा साहेब लिखते हैं- “जो कोई भी व्यक्ति एशिया के नक्शे को देखेगा उसे यह ध्यान में आ जाएगा कि किस तरह यह देश दो पाटों के बीच फंस गया है। एक ओर चीन व जापान जैसे भिन्न संस्कृतियों के राष्ट्रों का फंदा है तो दूसरी ओर तुर्की, पर्शिया और अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों का फंदा पड़ा हुआ है। इन दोनों के बीच फंसे हुए इस देश को बड़ी सतर्कता से रहना चाहिए, ऐसा हमें लगता है… इन परिस्थितियों में चीन एवं जापान में से किसी ने यदि हमला किया तो… उनके हमले का सब लोग एकजुट होकर सामना करेंगे। मगर स्वाधीन हो चुके हिन्दुस्थान पर यदि तुर्की, पर्शिया या अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों में से किसी एक ने भी हमला किया तो क्या कोई इस बात की आश्वस्ति दे सकता है कि इस हमले का सब लोग एकजुटता से सामना करेंगे? हम तो यह आश्वस्ति नहीं दे सकते”।
उन्होंने स्पष्ट संकेत किया है कि जब मुस्लिम देश भारत पर हमला करेंगे तो एकजुटता से उसका सामना नहीं किया जाएगा। मुस्लिम राष्ट्रों के हमलों के विरुद्ध कौन खड़ा नहीं होगा, तो उनका संकेत मुस्लिम समुदाय की ओर था। बाबा साहेब की यह अनुभूति इसलिए आई होगी क्योंकि भारत का बहुसंख्यक मुसलमान आज भी भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रांताओं को अपना नायक मानता है। यदि इसी बात को बाबा साहेब के नाम का उल्लेखन न करते हुए लिखा जाए, तो इसे किसी ‘हिन्दूवादी’ नेता के विचार ठहराया जाएगा। इस लेख के अंत में बाबा साहेब लिखते हैं- “नेहरू कमेटी की छानबीन हमने स्वार्थ से अंधे होकर नहीं की है। नेहरू कमेटी की योजना का हमने जो विरोध किया है, वह इसलिए नहीं कि कमेटी ने अस्पृश्यों के प्रति तिरस्कार युक्त व्यवहार किया है बल्कि हमने विरोध इसलिए किया है क्योंकि उससे हिन्दुओं को खतरा है और हिन्दुस्थान पर अनिष्ट आया है”।
– लोकेन्द्र सिंह, (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।