देहरादून। एक साल बाद फिर से पटवारी पुलिस की कार्यशैली पर एक बड़ा सवाल उठा है। रुद्रप्रयाग में एक युवती से दुष्कर्म का मामला इस एक सदी पुरानी व्यवस्था की भेंट चढ़ने वाला था। सात दिनों तक इसे दबाने का भरपूर प्रयास हुआ, लेकिन परिजनों की जागरूकता के चलते केस को रेगुलर पुलिस को ट्रांसफर करना पड़ा। एक साल से इस व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास चल रहा है, लेकिन अब भी बहुत बड़ा हिस्सा पटवारी क्षेत्र के पास ही है।
बता दें कि पिछले साल पौड़ी जिले में चर्चित अंकिता हत्याकांड मामले में भी पटवारी पुलिस चार दिनों तक कुछ नहीं कर पाई थी। स्थानीय लोगों का जब गुस्सा बढ़ा तो प्रशासन को इस मामले को रेगुलर पुलिस को देना पड़ा। लेकिन, तब तक बहुत से साक्ष्य नष्ट हो गए थे। जांच एसआईटी के पास गई और फिर छह दिन बाद अंकिता की लाश बरामद हुई। इसके बाद इस पुरानी व्यवस्था को खत्म करने की बात शुरू हो गई। हाईकोर्ट ने भी इस मामले में शासन को सख्त निर्देश दिए थे। इस पर शासन ने पुलिस को सर्वे करने के निर्देश दिए।
मामले में पुलिस ने सर्वे किया तो 4000 से अधिक गांवों को रेगुलर पुलिस में शामिल किया गया। शासन के निर्देश पर 20 चौकी और छह नए रेगुलर पुलिस के थाने बनाए गए। लेकिन, अब भी बहुत से गांव रेगुलर पुलिस में शामिल होने से बचे हुए हैं। इसके लिए दूसरे चरण का सर्वे शुरू हो गया है। अब देखने वाली बात है कि इस पुरानी व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म होने में कितने दिन लगते हैं।
पटवारी पुलिस व्यवस्था लागू होने से सबसे बड़ा असर हत्याओं के मुकदमों में हुआ। पूरे प्रदेश में पूर्व के वर्षों में कई ऐसी हत्याएं हुईं जो रहस्य बन गईं। जब तक मुकदमों की जांच रेगुलर पुलिस के पास गई तब तक सारे साक्ष्य नष्ट हो गए। लिहाजा, रेगुलर पुलिस के पास भी करने को कुछ नहीं बचा। अंत में अधिकांश मामलों में पुलिस को भी अंतिम रिपोर्ट ही अदालत में दाखिल करनी पड़ी। बीते छह सालों में ऐसी 13 हत्याओं के राज से अब तक पर्दा नहीं उठ पाया है।