राजीव कुमार झा
लालू प्रसाद के अलावा देश के तमाम नेता यह मानते हैं कि किसी नेता का अगर अपराध से कोई रिश्ता है तो यह उसका व्यक्तिगत मामला है और राजनीति में अगर उस नेता का प्रभाव है तो दलीय फायदे के लिए उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। बिहार सरकार के द्वारा राज्य के जेल मैन्युअल में फेर बदल करके आनंद मोहन को जेल से रिहा करने के उसके फैसले पर केंद्र सरकार से फिर सवाल पूछा है।
वर्तमान में आनंद मोहन जेल से रिहा होने के बाद जदयू नेताओं के साथ देखे जा रहे थे और उनके बेटे चेतन आनंद राजद से दूरी कायम करते सोशल मीडिया पर सक्रिय थे। हमारे देश में नेतागण आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को कई बार संरक्षण देते हैं और इस संदर्भ में आपराधिक प्रवृत्ति के लोग अपने आचार विचार से अक्सर समस्याएं खड़ी करते हैं।
जमानत मिलने के बाद नेताओं के द्वारा इस दौरान सभा मीडिया में सक्रिय होने पर भी सुप्रीम कोर्ट को पाबंदी लगानी चाहिए। यह सजा की अवधि ही होती है। सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन को थाना में नियमित हाज़िरी लगाने के लिए भी कहा है। लालू प्रसाद भी जमानत मिलने के बाद राजनीति में सक्रिय हैं।
उन पर केस खत्म करने की बात राजद करता रहा है। लेकिन गरीबों के नेता सरकारी पैसों की लूट खसोट से सरकार के ख़ज़ाने की रक्षा में विफल क्यों रहे हैं। इस प्रश्न का कोई उत्तर उनके पास नहीं है। क्या गरीब नेताओं को गरीब बने रहने में शर्म आती है।