देहरादून। 19 साल पहले सदानीरा भागीरथी नदी के नाम पर बने भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण के इरादे भी सरकारी तंत्र की उदासीनता के चलते सूख गए हैं। टिहरी बांध परियोजना से पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय तंत्र को पहुंचने वाले क्षति के आकलन के साथ ही नदियों के संरक्षण के लिए यह प्राधिकरण बनाया गया था, लेकिन अपने उद्देश्यों को लेकर यह एक भी उपलब्धि हासिल नहीं कर सका है।
उत्तरकाशी और टिहरी जिलों के 10 विकासखंडों के लिए प्राधिकरण के तहत विकास की योजनाएं लागू होनी थीं, मगर राज्य सरकारों की उपेक्षा के चलते प्राधिकरण धरातल पर काम करने के बजाय कार्यालय तक ही सिमट कर रह गया। गठन के 19 साल बाद भी यह उपनल कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है। गत वित्तीय वर्ष में तो सरकार की ओर से दी जाने वाली एक करोड़ की वित्तीय सहायता भी नहीं दी गई।
वर्ष 2005 में प्रदेश की नारायण दत्त तिवारी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर देवप्रयाग से गंगोत्री तपोवन तक परियोजना से पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय तंत्र को होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण बनाया था। नदियों में खनन करने, कूड़ा, सीवेज, सड़क निर्माण का मलबा डालने पर भी प्राधिकरण को ही लगाम लगनी थी, लेकिन प्राधिकरण अपनी योजनाओं को आकार नहीं दे पाया।
प्राधिकरण की सीएम की अध्यक्षता में होने वाली बैठक 2020 से और कार्यपालिका समिति की बैठक सितंबर 2019 से नहीं हुई। हालांकि, प्राधिकरण के उपाध्यक्ष मार्च 2024 तक कुर्सी पर काबिज रहे। प्राधिकरण का केंद्रीय कार्यालय टिहरी में है। इसके अलावा देहरादून और उत्तरकाशी में भी कार्यालय है। 19 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें देहरादून में 14 , टिहरी में दो और उत्तरकाशी में तीन कर्मचारी हैं। सीईओ और वित्त अधिकारी के अलावा सभी कर्मचारी उपनल से तैनात हैं।
टीएचडीसी ने टिहरी बांध से वर्ष 2006 से मार्च 2020 के बीच उत्तराखंड सरकार को 2,800 करोड़ की धनराशि बतौर रॉयल्टी दी। अधिनियम के अनुसार, सरकार को रॉयल्टी की 20 फीसदी धनराशि करीब 560 करोड़ रुपये प्राधिकरण को देनी थी। इसके अलावा सरकार को बांध प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए प्राधिकरण को प्रतिवर्ष 44 करोड़ रुपये देने थे, लेकिन सरकार ने अभी तक यह रकम नहीं दी। बांध प्रभावित महिपाल सिंह नेगी कहते हैं कि यदि प्राधिकरण को बजट दिया जाता तो घाटी के विकास के साथ ही रोजगार के नए अवसर मिलते।
टिहरी बांध निर्माण को 1990 में भारत सरकार ने परियोजना से होने वाले नुकसान के आकलन के लिए समिति गठन करने की शर्त पर मंजूरी दी। इस पर तत्कालीन उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव की सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नदी घाटी प्राधिकरण की स्थापना के लिए अधिसूचना जारी की और 1999 में विधानमंडल द्वारा इसके गठन का प्रस्ताव पारित किया गया, लेकिन 2000 में अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वर्ष 2005 में उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नदी घाटी प्राधिकरण के तहत ही भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण का गठन किया। सीएम को प्राधिकरण अध्यक्ष बनाया गया। साथ ही सरकार द्वारा नामित उपाध्यक्ष, संबंधित क्षेत्र के छह विधायकों और जिला पंचायत अध्यक्ष, गढ़वाल मंडल कमिश्नर को सदस्य बनाया गया। साथ ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण और भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के उपसचिव स्तर के अधिकारी विशेष आमंत्रित सदस्य नामित किए गए।
बांध से मिलने वाले सीएसआर का लाभ बांध प्रभावितों को दिया जाए। इसके लिए टीएचडीसी प्रबंधन और मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया है। बांध में पानी ही नहीं रहेगा तो उत्पादन कैसे होगा। इसके लिए नदियों का संरक्षण और तटवती इलाकों में पौधरोपण जरूरी है। इसके लिए टीएचडीसी से मिलने वाले सीएसआर को प्रयोग किया जा सकता है।
-किशोर उपाध्याय, विधायक, टिहरी।
टिहरी बांध से मिलने वाली कुल रॉयल्टी का 20 फीसदी प्राधिकरण को दिया जाना था। टीएचडीसी से 19 सालों में 2,800 करोड़ रॉयल्टी मिल चुकी है, जिसका 560 करोड़ रुपये प्राधिकरण को दिया जाना था, लेकिन कुछ नहीं मिल रहा। इसके लिए सीएम को पत्र भी भेजा गया है। प्राधिकरण को धन नहीं मिलने से उसका उद्देश्य ही समाप्त हो गया है। मामले में दोबारा जल्द मुख्यमंत्री से मिला जाएगा।
-विक्रम सिंह नेगी, विधायक, प्रतापनगर।