देहरादून। बिनसर वन्यजीव विहार में वनाग्नि की चपेट में आने से चार वन कर्मचारियों की मौत हो गई थी। वन विभाग को अंदेशा है कि हादसे की वजह फॉयर बॉल है, जिससे बेहद तेज और अप्रत्याशित तौर पर घटना घटित हुई और वन कर्मचारियों को बचाव करने के लिए समय नहीं मिल पाया।
बिनसर वन्यजीव विहार में 14 जून को जंगल की आग बुझाने गए चार वनकर्मियों की मौत हो गई थी और चार घायल हो गए थे। इस मामले में वन मंत्री सुबोध उनियाल ने जांच के आदेश दिए हैं। प्रमुख वन संरक्षक को 15 दिनों में जांच रिपोर्ट देनी है। प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन ने घटनास्थल का दौरा किया है। प्रथम दृष्टया इस हादसे की एक वजह फायर बॉल को भी माना जा रहा है।
घटनास्थल पर जांच में कई सालों से काफी मात्रा में बांज की सूखी पत्तियां डंप होने का पता चला है। इसके अलावा घटनास्थल के पास तीखी ढाल भी है। ऐसे में आशंका है कि बांज की सूखी पत्तियां जो की काफी ज्वलनशील होती हैं, उसमें आग लगी और फायर बॉल बनने के बाद तेजी से आया होगा और उसकी चपेट में वहां जो वनकर्मी आ गए और उन्हें बचने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया। ऐसा संकेत और हालात देखकर वन अधिकारी अनुमान लगा रहे हैं। हालांकि, यह एक आशंका है और अभी जांच रिपोर्ट आना शेष है।
वन अफसरों के अनुसार, जब जंगल की आग लगती है और तेज हवा चलती है तो एक फायर बॉल बनता है जो मूवमेंट करता है। इस फायर बॉल की चपेट में जो भी चीज आती है, उसे काफी नुकसान होता है।
मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन कहते हैं कि चीड़ की पत्ती से पिरूल गिरता है। इस तरह बांज की पत्तियां गिरती हैं, जो फ्यूल लोड की तरह होती है। हालांकि, तुलनात्मक तौर पर बांज में आग कम लगती है, पर अगर एक बार आग लग जाए तो वह चीड़ की तुलना में देर तक सुलगती रहती है, इसलिए चीड़ में अगर आग लगती है, तो उसके बाद हरा होने की संभावना ज्यादा होती है, जबकि बांज के पेड़ में अगर आग लग गई है तो उसके फिर से हरा होने की संभावना कम रहती है। चीड़ में आग ऊपर से दिखाई देती है, जबकि कई बार बाज की आग अंदर-अंदर सुलगती रहती है और दिखाई नहीं देती है।