
देहरादून | पिछले महीने उत्तरकाशी के धराली में आई आपदा का वैज्ञानिक कारण सामने आ गया है। वैज्ञानिक समिति की रिपोर्ट के अनुसार, खीरगंगा (खेरा गाड) से आए 2,50,885 टन मलबे ने 5 अगस्त को भीषण तबाही मचाई। यही नहीं, समीपवर्ती हर्षिल क्षेत्र भी अब खतरे के घेरे में है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
- भारी वर्षा के कारण भूस्खलन बांध (landslide dam) टूटा और मलबे की बाढ़ ने धराली में तबाही मचाई।
- लिडार सर्वे से पता चला कि क्षेत्र का मलबा फैन 0.74 वर्ग किमी से घटकर 0.151 वर्ग किमी में सिमट गया, लेकिन उसमें मलबे का भार अत्यधिक बढ़ा।
- मलबे का प्रवाह 5000 मीटर ऊंचाई से 2570 मीटर तक तेजी से आया।
- कई जगहों पर लैंडस्लाइड डेम आउटबर्स्ट फ्लड (LLOF) भी हुए।
- मलबे के साथ पानी और ढलानों के कारण प्रवाह और ज्यादा विनाशकारी बन गया।
जलवायु परिवर्तन का असर
- 124 साल (1901–2024) के बारिश के आंकड़े बताते हैं कि क्षेत्र में मानसून की वर्षा 0.57 मिमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ी है।
- वैज्ञानिकों ने माना कि यह आपदा क्लाइमेट-इंड्यूस्ड डिब्रीस फ्लो (CIDF) का उदाहरण है।
- भविष्य में ऐसी घटनाएं और अधिक बढ़ सकती हैं, खासकर 4000 मीटर से ऊपर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में।
- हर्षिल क्षेत्र को भी उच्च खतरे की श्रेणी में रखा गया है।
समिति और अध्ययन
- समिति का गठन सचिव आईटी नितेश झा के निर्देश पर हुआ।
- इसमें यूकॉस्ट, आईआईआरएस, वाडिया इंस्टीट्यूट सहित कई वैज्ञानिक संस्थान शामिल रहे।
- एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना की तिरंगा टीम और स्थानीय लोगों की मदद से सर्वे किया गया।