अभी दुनिया के देश रूस-यूक्रेन के युद्ध की विभिषिका से दो-चार हो ही रहे हैं कि अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन-ताइवान के बीच तनाव के हालात पैदा हो गए हैं। हालांकि बड़े दिग्गजों को यह समझ जाना चाहिए कि रूस के सामने यूक्रेन जैसे छोटे से देश ने युद्ध को इतना लंबा खींचकर रूस के सामने चुनौती साबित कर दी है और माने या ना माने रूस को अंदरखाने यह महसूस करा दिया है कि जिस युद्ध को दो चार दिन का युद्ध मानकर यूक्रेन से सरेण्डर की आस लगाये बैठा था उस युद्ध ने रूस ही नहीं दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था को झकझोर के रख दिया है। अनाज संकट के साथ ही कच्चे तेल, गैस आदि का संकट सबके सामने है।
लगभग यही हालात ताइवान-चीन के बीच संघर्ष के दौरान होना है। भले ही ताइवान कितना ही छोटा देश हो, चीन कितना ही बौना मानता हो पर दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था को हिलाने के लिए ताइवान किसी बड़ी ताकत से कम नहीं है। यहां तक कि ताइवान से तनाव के परिणाम को स्वयं चीन को भी भुगतना पड़ेगा। कोरोना के दौर में हालात हम देख चुके हैं। हालांकि नैंसी की यात्रा के बाद चीन ने गहरी नाराजगी जताई है और प्रतिक्रिया स्वरूप सैन्य अभ्यास आरंभ कर दिया है।
या यों कहें कि दबाव की नीति के तहत ताइवान की घेराबंदी शुरू कर दी है। ताइवान आज भले ही छोटा देश हो पर अपनी तकनीक की ताकत की बदौलत सारी दुनिया के देशों को हिलाने की क्षमता रखता है। चौपहिया से लेकर मोबाइल इंडस्ट्री तक को पटरी से उतारने की क्षमता आज ताइवान के पास है और मजे की बात यह कि इस ताकत को दुनिया के सारे देश जानते हैं। स्वयं चीन की अर्थव्यवस्था को ऑक्सीजन देने में ताइवान की प्रमुख भूमिका है। आज चौपहिया वाहन से लेकर मोबाइल सहित इलेक्ट्रोनिक उत्पादों के निर्माण उपयोग में आने वाला सेमीकंडक्टर का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश ताइवान है।
अभी पिछले दिनों ही सेमीकंडक्टर की कम आपूर्ति के चलते कार इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हो चुकी है। आज दुनिया के देशों में सेमीकंडक्टर के निर्माण में सबसे आगे ताइवान है। ताइवान आज भी सेमीकंडक्टर के निर्माण में पहले पायदान पर है। यह सफर भी कोई ज्यादा पुराना नहीं है। 1987 में ही ताइवान ने सेमीकंडक्टर निर्माण की कंपनी की स्थापना की थी। एक समय ऐसा भी रहा है जब दुनिया के देशों की 92 फीसदी डिमांड की पूर्ति इस कंपनी द्वारा की जा रही थी।
दक्षिण कोरिया की कंपनी सैमसंग की भागीदारी केवल 8 फीसदी थी। सेमीकंडक्टर के निर्माण व गुणवत्ता में ताइवान चीन से मीलों आगे है। यह भी साफ है कि ताइवान और चीन के बीच तनाव बढ़ता है और युद्ध के हालात बनते हैं तो सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनियों में उत्पादन प्रभावित होगा और इससे कारों से लेकर मोबाइल तक सभी के उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। दुनिया की कार, मोबाइल व इलेक्ट्रोनिक कंपनियों में उत्पादन कार्य प्रभावित होगा।
चीन ताइवान के बीच तनाव का असर अभी फिलहाल तो इन दोनों देशों में सामने आने लगा है। चीन ने ताइवान से आने वाली खाद्य सामग्री के 100 से अधिक उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी है तो दूसरी और ताइवान ने भी चीन से मंगाये जाने वाले कंस्ट्रक्शन से जुड़े उत्पादों को मंगाना बंद कर दिया है और इन उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी है। इसे केवल दो देशों के बीच एक दूसरे के खिलाफ कार्यवाही से नहीं देखा जा सकता। इस टकराव का सीधा-सीधा असर दुनिया के देशों पर निश्चित रूप से पड़ेगा, इससे कोई इंकार करता है तो यह किसी भूल से कम नहीं होगी। कोरोना के बाद संभलती अर्थव्यवस्था को रूस यूक्रेन युद्ध से पहले ही धक्का लग चुका है।
अगस रूस यूक्रेन की तरह ही ताइवान और चीन के बीच तनाव युद्ध में बदलता है तो दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था को बचाना आसान नहीं होगा। आपूर्ति व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगी। कारों, मोबाइल, कैमरों, प्रिंटरों और समग्र रूप से इलेक्ट्रॉनिक उद्योग को प्रभावित करेगी। चीन ने ताइवान के पास सैन्य अभियान जारी कर रखा है और ताइवान का तो यहां तक कहना है कि यह किसी हमले से कम नहीं हैं। ताइवान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद तक का आह्वान कर दिया है। ऐसे में दुनिया के देशों को हालात की गंभीरता को समझना होगा।
इतिहास तो यही बताता है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं तनाव को कम करने में लगभग विफल ही रही हैं। रूस यूक्रेन के हालात सबके सामने हैं। यही हालात चीन ताइवान के हालातों पर रहेंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ के भरोसे अधिक समय तक चला नहीं जा सकता। इसी तरह से दुनिया के देशों को यह भी साफ हो जाना चाहिए कि दुनिया के देश आंख मूंद कर हालात देखते रहेंगे तो इसके परिणाम अच्छे होने वाले नहीं हैं। दुनिया के देशों को पहल करनी ही होगी ताकि समय रहते तनाव को कम किया जा सके।
दरअसल अपनी ताकत के प्रदर्शन और पड़ोसी देशों को दबाने की नीति बढ़ती जा रही है। पर अब ऐसा करना आसान नहीं है। कहीं ना कहीं यह समझना होगा कि अब हम आदि मानव नहीं रहे हैं। हमें सहअस्तित्व की नीति पर काम करना होगा। छोटा हो या बड़ा देश उसके अस्तित्व और अस्मिता को स्वीकारना होगा। आज यह समय आ गया है जब छोटे से छोटा देश आसानी से कब्जे में नहीं लिया जा सकता है। कोरोना और रूस यूक्रेन युद्ध से समय रहते सबक लेना ही होगा।