
देहरादून : कांवड़ यात्रा में श्रद्धालुओं द्वारा क्षमता से अधिक गंगाजल उठाने की होड़ चिंता का विषय बनती जा रही है। हाल के वर्षों में देखा गया है कि युवा एक-दूसरे से आगे निकलने और बल प्रदर्शन के उद्देश्य से 100 से 200 लीटर तक जल अपने कंधों पर उठाकर यात्रा कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति न केवल धार्मिक गुरुओं बल्कि आम नागरिकों और चिकित्सकों को भी चिंतित कर रही है।
धार्मिक आस्थाओं के केंद्र हरिद्वार के कनखल स्थित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राज्य राजेश्वराश्रम महाराज का कहना है कि महादेव को प्रसन्न करने के लिए केवल एक लोटा जल भी पर्याप्त है। वे भाव के भूखे हैं, न कि भार के। उन्होंने कहा कि गंगा मां की संतानें यदि खुद को कष्ट में डालेंगी तो यह उनकी भावना के भी विपरीत होगा।
भारत माता मंदिर के महंत महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा कि कांवड़ यात्रा आस्था का पर्व है, न कि प्रतिस्पर्धा या शक्ति प्रदर्शन का। उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को विशेष रूप से अपनी क्षमता के अनुसार ही जल लेकर यात्रा करनी चाहिए।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कांवड़ यात्रा के बदलते स्वरूप को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि डेढ़-दो क्विंटल जल उठाकर 10 कदम चलकर रुकना कोई तप नहीं, बल्कि आत्मक्लेश है। यह परंपरा का अपमान है। उन्होंने आग्रह किया कि श्रद्धालु इस धार्मिक अनुष्ठान को शांतिपूर्वक और सहज रूप से संपन्न करें।
चिकित्सकों की राय भी इस विषय पर स्पष्ट है। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के रोग निदान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. संजय सिंह का कहना है कि नियमित अभ्यास के बिना इस तरह अत्यधिक भार उठाना शरीर के लिए गंभीर रूप से हानिकारक हो सकता है। इससे रीढ़ की हड्डी, कंधों और स्नायु संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। उन्होंने चरक और सुश्रुत संहिताओं का हवाला देते हुए कहा कि प्राचीन ग्रंथों में भी सलाह दी गई है कि व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार ही वजन उठाना चाहिए।
इस प्रकार, धार्मिक और चिकित्सकीय दृष्टिकोण से यह स्पष्ट है कि कांवड़ यात्रा की मूल भावना को समझते हुए श्रद्धालुओं को संयम और विवेक का परिचय देना चाहिए, ताकि यह पावन यात्रा आस्था, शांति और स्वास्थ्य के साथ संपन्न हो सके।