
नैनीताल। प्रदेश में कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण पर जल्द ही स्थिति स्पष्ट होने वाली है। उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि छह माह के भीतर नियमितीकरण संबंधी नियम बनाए जाएं। इसके साथ ही, हाल ही में जारी विज्ञापन में याचिकाकर्ता और समान स्थिति वाले एक अन्य कर्मचारी के पद को खाली रखने का आदेश भी दिया गया।
राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि सात सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है, जो कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण पर विचार करेगी।
मामला और सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने स्टेट नर्सिंग कॉलेज में 15 वर्षों से कॉन्ट्रैक्ट पर सेवा दे रहे असिस्टेंट प्रोफेसर (पूर्व में लेक्चरर) मयंक कुमार जामिनी के मामले में सुनवाई की। याचिकाकर्ता का कहना था कि उन्हें लंबे समय से बिना रुकावट सेवा दी जा रही है, लेकिन हाल ही में 14 जुलाई 2025 को जारी असिस्टेंट प्रोफेसर के 16 पदों के विज्ञापन में उनके पद को शामिल किया गया, जिसमें आयु सीमा और अनुभव का कोई वेटेज नहीं दिया गया।
याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि वह सभी योग्यता और अनुभव की शर्तें पूरी करते हैं, फिर भी न तो उन्हें नियमित किया गया और न ही समान कार्य के लिए समान वेतन दिया गया।
हाईकोर्ट के आदेश
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता 15 वर्षों से लगातार सेवा दे रहे हैं और सरकार स्वयं नियम बनाने की प्रक्रिया में है। इस कारण विज्ञापन में शामिल पद को फिलहाल अलग रखा जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि छह माह में नियम बनाए जाएं और उसके बाद याचिकाकर्ता के नियमितीकरण पर निर्णय लिया जाए। तब तक वह अपने पद पर कार्यरत रहेंगे और पूर्ववत वेतन प्राप्त करेंगे।
हाईकोर्ट के इस आदेश से न केवल याचिकाकर्ता को बड़ी राहत मिली है, बल्कि यह प्रदेश में कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण के मुद्दे पर एक ऐतिहासिक दिशा-निर्देश भी है।