भारत और पाकिस्तान, दो अलग-अलग मुल्क. कभी एक ही हुआ करते थे. 1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान बना. चूंकि भारत पर अंग्रेजों ने राज किया था, इसलिए जब भारत का अपना संविधान बना तो उसमें अंग्रेजों के बनाए कानून की झलक भी दिखी. ठीक ऐसा ही पाकिस्तान में भी हुआ. भारत और पाकिस्तान दोनों ही जगह ज्यादातर कानून एक जैसे ही हैं.
बात संसद की है तो दोनों ही देशों की संसद के कामकाज में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. अगर वो पास हो जाता तो इमरान की सरकार गिर जाती. भारत में भी ऐसा ही होता है. विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आता है और अगर वो पास हो जाता है तो सरकार गिर जाती है.
भारत और पाकिस्तान की संसद के काम करने का तरीका लगभग एक जैसा है. हालांकि, कई सारी बातें ऐसी भी हैं जो दोनों देशों के राजनीतिक सिस्टम को अलग बनाती हैं. बारी-बारी जानते हैं कि आखिर ऐसी कौन सी बातें हैं जो भारत और पाकिस्तान की संसद को अलग बनाती हैं?
भारत की तरह ही पाकिस्तान में संसद के दो सदन हैं. भारत की संसद को संसद ही कहा जाता है, जबकि पाकिस्तान की संसद को मजलिस-ए-शूरा कहा जाता है. भारतीय संसद के निचले सदन को लोकसभा और ऊपरी सदन को राज्यसभा कहते हैं. वहीं, पाकिस्तान के निचले सदन को नेशनल असेंबली और ऊपरी सदन को सीनेट कहते हैं. नेशनल असेंबली को उर्दू में कौमी इस्म्ब्ली और सीनेट को आइवान-ए-बाला कहा जाता है.
भारत में लोकसभा में 545 सीटें होती हैं, जिसमें दो सीटें नामित होती हैं. राज्यसभा में 250 सीटें होती हैं, जिनमें से 12 सदस्यों को राष्ट्रपति नामित करते हैं. वहीं, पाकिस्तान के निचले सदन यानी नेशनल असेंबली में 342 सीटें होती हैं और ऊपरी सदन यानी सीनेट में 104 सीटें होती हैं.
भारत में लोकसभा की सभी 543 सीटों पर चुनाव कराए जाते हैं. लोकसभा सांसदों को जनता चुनती है. जबकि, राज्यसभा सांसदों को राज्यों के विधायक चुनते हैं. पाकिस्तान में 342 में 272 सीटों पर सीधे चुनाव होते हैं. बाकी 70 सीटों पर अनुपात के माध्यम से चुनाव होता है. जो पार्टी 272 सीटों पर जितनी ज्यादा सीट हासिल करेगी, उसे इन 70 सीटों में उतनी ही ज्यादा सीट मिलेगी.
पाकिस्तान की सीनेट का चुनाव राज्यसभा चुनाव की तरह ही होता है. यहां हर प्रांतीय असेंबली यानी विधानसभा 23-23 सदस्यों का चुनाव करते हैं. सीनेट के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल और नेशनल असेंबली के सदस्यों का कार्यकाल 5 साल का होता है.
भारत में राजनीतिक पार्टी अपनी ओर से किसी नेता का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए आगे बढ़ाती है. अगर आम चुनाव में पार्टी को बहुमत मिल जाता है, तो वो प्रधानमंत्री बन जाता है. लेकिन अगर बहुमत नहीं मिलता तो गठबंधन कर सरकार बनानी पड़ती है. पाकिस्तान में भी ऐसा ही होता है. पाकिस्तान में भी राजनीतिक पार्टियां अपने नेता का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाती हैं. लेकिन भारत के उलट पाकिस्तान में पहले बहुमत साबित करना होता है. यानी, चुनाव के बाद उम्मीदवार को सदन में अपना बहुमत दिखाना पड़ता है.
भारतः संविधान में कोई जिक्र नहीं है, लेकिन लोकसभा की रूल बुक में अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र है. अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष लेकर आता है. इसके लिए कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी है. लोकसभा अध्यक्ष से मंजूरी मिलने के बाद 10 दिन के भीतर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराई जाती है और फिर वोटिंग होती है.
पाकिस्तानः अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 20 फीसदी यानी 68 सदस्यों का समर्थन जरूरी है. अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के बाद इस पर चर्चा की जाती है. एक बार अविश्वास प्रस्ताव पेश हो गया तो 3 से 7 दिन में इस पर वोटिंग कराई जाती है.