देहरादून। उत्तराखंड सरकार राज्य के बुजुर्गों के लिए विशेष स्वास्थ्य योजना लेकर आ रही है। इस योजना के तहत स्वास्थ्य विभाग राज्य के 65 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों को हर 15 दिन में फोन करेगा और उन्हें घर बैठे स्वास्थ्य जांच की सुविधा देगा। 26 जनवरी को सरकार यह योजना लांच करेगी।
सवाल : उत्तराखंड सैन्य बहुल प्रदेश है, महिलाएं भी सेना में जा रही हैं, प्रदेश में महिला सैनिक स्कूल का प्रस्ताव था, यूपी में स्कूल खुल चुका है, लेकिन हमारा प्रस्ताव कहा लटका हुआ है?
जवाब : आप सब लोग जानते हैं, घोड़ाखाल में सैनिक स्कूल है। उसे राज्य सरकार संचालित करती है। सैनिक स्कूल में प्राचार्य सेना का रहता है। स्कूल का खर्च राज्य सरकार वहन करती है। सैनिक स्कूल के लिए हमने चार प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे हैं। इसमें एक पीठसैंण, एक चंपावत, एक ऊधमसिंह नगर और एक हरिद्वार का प्रस्ताव है। केंद्र सरकार कुछ स्कूल पीपीपी मोड में चलाना चाहती है। बालिका सैनिक स्कूल के लिए हमने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। यूपी ने भी इस तरह का प्रस्ताव भेजा है। जैसे ही केंद्र से मंजूरी मिलती है। इस दिशा में आगे काम किया जाएगा।
सवाल : राज्य में नई शिक्षा नीति को आधे-अधूरे ढंग से लागू कर दिया गया, ऐसा क्यों?
जवाब : उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जिसने शिक्षा नीति को सबसे पहले लागू किया। हमने 5,000 स्कूलों में बाल वाटिका से इस नीति की शुरुआत की। नई शिक्षा नीति को आंगनबाड़ी से लागू करने का मेनडेट है। इसे 2030 तक उच्च शिक्षा तक लागू होना है। पहले साल नीति बाल वाटिका में लागू की गई। अगले वर्ष पहली कक्षा में। चार सालों तक इसे प्राइमरी स्कूलों में लागू करना है। अगले तीन साल में माध्यमिक और फिर दो साल में उच्च शिक्षा में लागू होना है। उत्तराखंड में पहले साल में ही स्नातक में लागू करके हमने बड़ी लकीर खींची, इसलिए यह आधा अधूरा दिख रहा है। हम इसे चरणबद्ध ढंग से पीजी व रिसर्च स्कॉलर्स तक ले जाएंगे।
सवाल : प्रदेश में नई शिक्षा नीति उच्च शिक्षा में पूर्णतः कब तक लागू हो जाएगी ?
जवाब : केंद्र सरकार का मानना है कि 2035 तक इंटरमीडिएट के बाद 50 प्रतिशत बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करेंगे। आज पूरे देश में केवल 27 प्रतिशत बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं, जबकि उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जहां 2023 में 47 प्रतिशत युवा उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है। इनमें 52 प्रतिशत बच्चे जनजातीय, 46 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 47 प्रतिशत लड़कियां हैं। इसलिए हमने केंद्र सरकार से कहा कि हमने उच्च शिक्षा में नई शिक्षा नीति लागू किया। दो साल बाद में हम बच्चे को विकल्प देंगे कि वह विज्ञान के साथ भूगोल भी ले सकता है। कला के साथ गणित ले सकता है। वह विवि बदल सकता है। इस व्यवस्था को हम चरणबद्ध हम ढंग से लागू करेंगे।
सवाल : विशेषज्ञ डॉक्टरों को सरकार मोटी तनख्वाह देने को तैयार हैं। इसके बावजूद डॉक्टर नहीं मिल रहे हैं। प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी दूर करने को अब सरकार की क्या रणनीति है?
जवाब : विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं पूरे देश में है। प्रदेश में एमबीबीएस डॉक्टरों के पद हाउस फुल हो गए हैं। अब सरकार का फोकस विशेषज्ञ और सुपर स्पेशियलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति पर है। 2014 से पहले देश में 23 हजार एमबीबीएस डॉक्टर पीजी करते थे, वहीं आज 57 हजार पीजी कर रहे हैं। आगामी दो साल के भीतर उत्तराखंड में विशेषज्ञ और सुपर स्पेशियलिस्ट डॉक्टरों की कमी दूर हो जाएगी।
इसके लिए प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टरों का अलग कैडर बना रहे हैं। साथ ही विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु सीमा को 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर रहे हैं। 2014 से पहले उत्तराखंड में पांच एमबीबीएस छात्र पीजी करते थे। वहीं, आज 150 एमबीबीएस छात्र पीजी कर रहे हैं। 400 डॉक्टर पीजी करने जा रहे हैं। इसी साल प्रदेश को पीजी कोर्स पूरा कर रहे 57 विशेषज्ञ डॉक्टर मिल जाएंगे। वर्तमान में एमबीबीएस, नर्सिंग अधिकारी, एएनएम, फार्मासिस्ट, सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों के शत प्रतिशत तैनाती है।
सवाल : पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में आप सबसे बड़ी चुनौती क्या मानते हैं?
जवाब : स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई चुनौती है, तो वह जागरूकता की कमी है। लोग तब अस्पताल आते हैं, जब हालत गंभीर हो जाती है। किसी भी बीमारी को लेकर लोग समय पर अस्पताल आ जाएं तो किसी तरह कोई दिक्कत नहीं है। जागरूकता के लिए प्रदेश के हर गांव में प्रत्येक महीने स्वास्थ्य समितियों के माध्यम से शिविर लगाए जाएंगे, जिसमें सभी तरह के बीमारियों की जांच की जाएगी। प्रदेश में रह रहे सभी 65 साल से अधिक आयु के बुजुर्गों को स्वास्थ्य विभाग फोन कर हर 15 दिन में स्वास्थ्य चेकअप करेगा। इस योजना की शुरुआत 26 जनवरी से की जाएगी।
सवाल : प्रदेश के अशासकीय महाविद्यालयों में काफी समय से भर्ती नहीं हुई, इनमें शिक्षकों के कई पद खाली हैं। भर्ती की सरकार की क्या योजना है?
जवाब : उच्च शिक्षा में जितने भी अशासकीय महाविद्यालय हैं, यह पहले राज्य सरकार के अधीन चलते थे। वेतन और भत्ते सरकारी शिक्षकों की तरह मिलते थे। वर्तमान में 18 अशासकीय महाविद्यालय केंद्रीय गढ़वाल विवि से संबद्ध हैं। जिस दिन अशासकीय कॉलेज राज्य विवि से संबद्ध होंगे, भर्तियां खोल दें।
सवाल : अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में खाली पदों को लेकर क्या योजना है?
जवाब : सरकार माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षा में सैकड़ों अशासकीय स्कूलों को भी अनुदान देती रही है। सरकार ने माध्यमिक शिक्षा में यह कर दिया कि किसी स्कूल को अनुदान की श्रेणी में लाया जाता है तो उस स्कूल को एकमुश्त 10 लाख रुपये दिए जाएंगे। सरकार स्कूल को शिक्षकों का वेतन नहीं देगी। माध्यमिक में जो स्कूल चल रहे हैं, उन्हें तीन विकल्प दिए हैं। यदि नहीं चला पाते तो स्कूल को सरकार को दे दें। चलाना चाहते हैं और अनुदान चाहते हैं तो शिक्षकों की भर्ती स्कूल नहीं, बल्कि सरकार करेगी। यदि किसी को यह दोनों विकल्प पसंद नहीं हैं तो अपने स्कूल को निजी स्कूल के रूप में चलाते रहें।
सवाल : जिला सहकारी बैंकों में चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की भर्ती में गड़बड़ियां सामने आईं है? भर्ती पारदर्शी तरीके से हो, इसके लिए क्या योजना है?
जवाब : चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की नियुक्ति का अधिकार पहले बोर्ड का था, लेकिन अब सरकार ने निर्णय लिया है कि चतुर्थ श्रेणी पदों पर 85 अंक अभ्यर्थी के करियर, पांच अंक सहकारिता गतिविधियों और 10 अंक साक्षात्कार के होंगे। बैंकों से कैश लाने और ले जाने के काम में सुरक्षाकर्मी उपनल के माध्यम से रखे जाएंगे, जबकि अन्य चतुर्थ श्रेणी पदों पर आउट सोर्स के माध्यम से भर्ती होगी। सहकारी बैंकों में पहले भर्तियों का सिस्टम नहीं था। अब बैंकों में क्लर्क से लेकर डीजीएम तक भर्ती आईबीपीएस के माध्यम से की जाएगी। सुधारों का असर दिखा है। पहले सहकारी बैंक 57 करोड़ के घाटे में थे। आज 200 करोड़ के प्रॉफिट में हैं।