हरिद्वार। चार स्थानों में से कुंभ कहीं भी हो इसके समस्त स्नानों का मुख्य आकर्षण अखाड़ों और साधु-संतों के स्नान पर्व रहते हैं। अखाड़ों की जमातें कुंभ नगरों के बाहर कब डेरा डालती हैं, तेरह अखाड़ों की छावनियों में किस दिन प्रवेश करती हैं, किस दिन ध्वज चढ़ता है और किस दिन कुंभ के शाही स्नान होने हैं, करोड़ों के मेले का तमाम केंद्र वही तिथियां रहती हैं।
छावनियों में प्रवेश को पहले प्रवेशवाई कहा जाता था, जो मुगल काल में पेशवाई हो गई। चूंकि, कुंभ स्नानों के दिन तमाम तामझाम हाथी, घोड़ों, ऊंटों और रथों के साथ राजा महाराजा भी अखाड़ों के साथ चलते थे, लिहाजा शाही प्रबंधों के कारण उन्हें शाही स्नान कहा जाने लगा। अब अखाड़ा परिषद दो माह बाद प्रारंभ हो रहे प्रयाग कुंभ से पूर्व पेशवाई और शाही नामों को मुगलकालीन बताकर बदलने जा रही है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने बताया, इसका निर्णय प्रयागराज में कुंभ स्नानों से पूर्व कर लिया जाएगा। यह काम अखाड़ा परिषद की बैठक बुलाकर परामर्श के बाद किया जाएगा। नए नाम भाषाविदों के साथ परामर्श के बाद घोषित किए जाएंगे। रविंद्र पुरी ने बताया, संस्कृत अथवा हिंदी भाषा से नामों का चलन किया जाएगा।
उर्दू या फारसी के अन्य नाम भी अखाड़ों से हटाए जाएंगे। बताया, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में कुंभ भरते हैं। संबंधित चारों राज्यों की सरकारों को भी लिखित सूचना दी जाएगी, ताकि कुंभ स्नानों में नए नाम सरकारी व्यवस्थाओं में भी जोड़े जा सकें।ज्ञात हो कि कुंभ मेलों के तमाम आयोजन संन्यासियों के सात, बैरागियों के तीन, उदासियों के दो और निर्मलों के एक वैभवशाली इतिहास से जुड़े हैं।
आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज ने देश के लाखों नागाओं, बैरागियों, उदासीनों और निर्मलों को अखाड़ों में संगठित किया था। अखाड़ों को हिंदू राजाओं का राज्याश्रय प्राप्त था। उसी दौर में उर्दू फारसी के जखीरा, मालो असबाब, खजाना आदि अनेक शब्द अखाड़ों में प्रविष्ट हो गए। अब अखाड़े खुद ये शब्द बदलेंगे। इसके लिए जूना, अग्नि, आह्वान, निरंजनी, महानिर्वाणी, आनंद, अटल, निर्मोही अणी, निर्वाणी अणि, दिगंबर अनी, बड़ा अखाड़ा उदासीन, नया अखाड़ा उदासीन और निर्मल अखाड़े के श्रीमहंतों की बैठक प्रयागराज में शीघ्र बुलाई जाएगी।