नई दिल्ली। एक मरा हुआ शख्स जिंदा मिला है। दिलचस्प बात यह है कि यह किसी बॉलीवुड फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा परीक्षण (examine) किए जा रहे मामले का हिस्सा है। मामला साल 2005 का है, जब पंजाब पुलिस ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के प्रावधानों के तहत एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। बाद में दावा किया था कि वह हिरासत से भाग गया है। उसके पिता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण (बंदी प्रत्यक्षीकरण) दायर किया। इसके कुछ दिनों बाद एक शव मिला, जिसे मान लिया गया था कि वो हिरासत से भागे आरोपी का है। हालांकि, 14 साल बाद शख्स जिंदा मिला।
अब शीर्ष अदालत 2005 में पुलिस हिरासत से लापता हुए व्यक्ति के पिता नागिंदर सिंह द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही है। यह मामला न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष चार अक्तूबर को सूचीबद्ध किया गया था। इस मामले की सुनवाई अब अगले साल 14 फरवरी को होगी। नागिंदर सिंह ने अपनी विशेष अनुमति याचिका में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 12 जनवरी, 2021 के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उनकी विरोध याचिका और पुलिस अधिकारियों को तलब करने के 12 दिसंबर, 2017 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया गया था। पंजाब पुलिस ने अपील का विरोध किया है।
नागिंदर सिंह की ओर से पेश अधिवक्ता पल्लवी प्रताप, प्रशांत प्रताप और अमजद मकबूल ने अपनी याचिका में कहा कि उनके बेटे हरदीप सिंह को पुलिस ने एनडीपीएस अधिनियम के प्रावधानों के तहत लुधियाना के देहलों से 24 अगस्त 2005 को गिरफ्तार किया था। अगले दिन उन्हें पता चला कि उनका बेटा पुलिस हिरासत से भाग गया है। दो प्रथम सूचना रिपोर्टें दर्ज कराई गई थीं। हरदीप सिंह के खिलाफ नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 15 और 25 के तहत था। पंजाब पुलिस ने कहा था कि जब पुलिस हरदीप सिंह राजू को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के लिए सरकारी वाहन में ले जा रही थी, तो वह पुलिस हिरासत से भाग गया। उसके खिलाफ 25 अगस्त, 2005 को आईपीसी की धारा 224 के तहत एक और प्राथमिकी दर्ज की गई।
इसके बाद नागिंदर सिंह ने अपने बेटे हरदीप सिंह को पेश करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण दायर किया। उनका कहना था कि उनके बेटे को पुलिस स्टेशन देहलों में पुलिस ने अवैध रूप से हिरासत में रखा है। इस पर वारंट अधिकारी नियुक्त किया गया, लेकिन हरदीप सिंह का पता नहीं चल सका। बाद में, 17 सितंबर, 2005 को एक अज्ञात व्यक्ति का शव मिला और उसका पोस्टमार्टम किया गया।
इसके बाद, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि शव उसके बेटे का था और आरोपी पुलिस अधिकारियों ने उसकी हत्या कर दी। हालांकि, नरिंदर सिंह ने शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी अपील में स्पष्ट किया है कि उन्हें किसी से पता चला है कि एक अज्ञात शव एक पानी के तालाब से बरामद किया गया था और जल्दबाजी में पुलिस अधिकारियों द्वारा उसका अंतिम संस्कार किया गया था।
इन सब को देखते हुए हाईकोर्ट ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) को जांच कराने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक (अपराध) ने एक रिपोर्ट दी थी कि तालाब से बरामद शव शिकायतकर्ता के बेटे का नहीं था और वह जीवित था तथा शिकायतकर्ता (पिता) के नियमित संपर्क में था। इसके बाद न्यायालय ने लुधियाना के सत्र न्यायाधीश को जांच करने और शिकायत करने वाले पुत्र के पता-ठिकाने के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निदेश दिया। सत्र न्यायाधीश ने 31 अगस्त, 2008 को एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि शिकायतकर्ता के बेटे को पुलिस ने हिरासत में रहते हुए मार दिया था। उक्त रिपोर्ट के मद्देनजर, अदालत ने 21 मई, 2010 को आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया और इस प्रकार, 21 अगस्त, 2010 को पुलिस स्टेशन डेहलोन में आईपीसी की धारा 302 और 201 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।
एफआईआर की जांच के दौरान, एक एसआईटी का गठन किया गया जिसने फिर से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की कि शिकायतकर्ता का बेटा जीवित है क्योंकि आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। साथ ही यह भी कहा कि वास्तव में, हरदीप सिंह पुलिस हिरासत से भाग गया था। रिपोर्ट के आधार पर 31 अक्तूबर 2011 की तारीख वाली रद्दीकरण रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर की गई थी। इसके बाद शिकायतकर्ता ने विरोध याचिका दायर की। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सात दिसंबर, 2017 के आक्षेपित आदेश के तहत याचिकाकर्ताओं को आईपीसी की धारा 302/201/34 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया। पुलिस अधिकारियों ने आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी, जिसे खारिज कर दिया गया।
इस बीच, मजिस्ट्रेट ने अगस्त 2019 में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था और दो सितंबर, 2019 को पुलिस ने अपने वकील के माध्यम से ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर किया और दावा किया कि हरदीप सिंह (शिकायतकर्ता नरिंदर का मरा बेटा) जिंदा है। उसे 25 अगस्त की प्राथमिकी में भगोड़ा घोषित किया गया था। वर्ष 2005 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया है और वह न्यायिक हिरासत में है।