देहरादून। राजा की रियासत भले ही चली जाए उसका मिजाज नहीं बदलता। जंगल के राजा बाघ के साथ भी ठीक ऐसा ही है। उत्तराखंड के जंगलों में अपनी बादशाहत चला चुके आदमखोर बाघ (विक्रम व भोला) अब दून चिड़ियाघर के बाड़े में हैं। जब से उन्हें दरवाजे से बाहर निकाला गया है, दोनों बाघ बाड़े में टेरेटरी (सरहद) बनाकर अपने प्रभुत्व वाला इलाका तय करने में लगे हैं। विक्रम व भोला अपने पेशाब के जरिए टेरेटरी निर्धारित करने की जुगत कर रहे हैं।
यह दोनों जमीन के अलावा कांच पर भी मूत्र से निशान लगाकर रियासत का निर्धारण कर रहे हैं। देहरादून जू में 25 नवंबर को पहली बार भोला व विक्रम को बाड़े में जनता के लिए प्रदर्शित किया गया। इससे पहले ये दोनों बाघ ढेला रेस्क्यू सेंटर में थे। बाड़े में खोले जाने के बाद से दोनों बाघों के व्यवहार में काफी अंतर देखा जा रहा है। चिड़ियाघर प्रशासन दोनों बाघों को प्राकृतिक परिवेश देने का प्रयास कर रहा है। उधर, दोनों बाघ भी अपने बाड़े को जंगल की तरह स्वीकार करने की कोशिश में लगे हैं। दोनों ही बाघों का दिनभर का रूटीन बड़ा दिलचस्प है।
वन विभाग के एसडीओ सुनील बलूनी बताते हैं कि टेरेटरी बनाना बाघ का स्वभाव है। बाड़े में खोले जाने के बाद से ही दोनों बाघ अपनी टेरेटरी बना रहे हैं। दोनों बाघ नर होने के कारण आपसी संघर्ष का खतरा है। इसलिए एक बार में एक ही बाघ को बाड़े में खुला छोड़ा जाता है। जब विक्रम बाहर खुला होता है तो वह अपने मूत्र से जमीन पर निशान लगाकर क्षेत्र निर्धारण करता है। वहीं, भोला को छोड़े जाने पर वह सूंघकर यह पता करने का प्रयास करता है कि जहां वह निशान लगा रहा है, वहां पहले से विक्रम ने तो टेरेटरी नहीं बना रखी है। इसी तरह पेड़ पर पंजे मारकर भी बाघ निशान लगा रहे हैं।
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. जीएस कुसारिया बताते हैं कि बाघों की टेरेटरी 50 किमी से भी ज्यादा क्षेत्र में होती है। वह पेशाब से टेरेटरी का निर्धारण करते हैं, ताकि उसकी गंध से दूसरे बाघ को इलाके के बारे में पता लग सके। बाघ जमीन पर भी खरोंच करते हैं। वह दूसरे टाइगरों को संकेत देते हैं कि यह उनकी सीमा है। उसमें प्रवेश न करें। इसके अलावा मूत्र छिड़ककर, पंजा मारकर, आवाज निकालकर, मल जमा कर व गश्त कर बाघ अपनी टेरेटरी प्रदर्शित करते हैं।