
देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून, जो कभी स्वस्थ वातावरण और हरियाली के लिए जानी जाती थी, अब प्रदूषण के घने धुएं में घिरती जा रही है। वीकेंड पर हजारों पर्यटक वाहनों की आवाजाही से दून की हवा ज़हर बनती जा रही है। कार्बन मोनोऑक्साइड और पीएम-10 जैसे प्रदूषक तत्वों का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है।
🔴 मुख्य तथ्य:
- वीकेंड पर हजारों वाहन पहुंच रहे दून घाटी में
- परिवहन विभाग ने 676 प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों से 2 करोड़ का जुर्माना वसूला
- वायुमंडल में PM-10, CO, CO₂, NOx, सीसा जैसे जहरीले तत्व बढ़े
- शनिवार-रविवार को वायु प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक
🌫️ क्यों हो रही है हवा जहरीली?
- गर्मियों की छुट्टियों में दून में पर्यटकों की बाढ़
- बिना फिटनेस और प्रदूषण जांच के वाहन सड़कों पर
- पहाड़ी इलाकों में ट्रैफिक जाम से लंबे समय तक वाहन स्टार्ट रहने से धुआं अधिक
📊 प्रदूषण के स्रोत कौन-कौन?
प्रदूषक तत्व | स्रोत | प्रभाव |
---|---|---|
कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) | डीज़ल-पेट्रोल वाहन | हृदय और फेफड़ों पर असर |
PM-10 | धूल और डीज़ल धुआं | अस्थमा, एलर्जी |
हाइड्रोकार्बन | अधजले ईंधन | कैंसर की आशंका |
नाइट्रोजन ऑक्साइड | वाहनों का धुआं | सांस संबंधी रोग |
सीसा (Lead) | पुराने ईंधन और इंजन से | मस्तिष्क विकास में रुकावट |
🏥 स्वास्थ्य पर खतरा बढ़ा
- बच्चों, बुजुर्गों और सांस के मरीजों के लिए विशेष खतरा
- प्रदूषक तत्वों से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और थकान की शिकायतें बढ़ीं
- अस्पतालों में सांस और आंखों में जलन के मामलों में वृद्धि
🚫 प्रशासन की सख्ती
- 676 वाहनों से 2 करोड़ जुर्माना
- प्रदूषण नियंत्रण सर्टिफिकेट के बिना घूमने वालों पर निगरानी
- फिटनेस विहीन वाहनों की जांच तेज
- पर्यावरण विभाग द्वारा साप्ताहिक मॉनिटरिंग
✅ क्या करें समाधान?
- सार्वजनिक परिवहन और शटल सेवाओं को बढ़ावा दें
- पर्यटक सीजन में वाहन संख्या सीमित की जाए
- ई-वाहनों और साइकिल राइडिंग को प्रोत्साहन
- वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशन को दून में बढ़ाया जाए
- नागरिकों को जागरूक और जिम्मेदार बनाना जरूरी
📣 निष्कर्ष:
देहरादून अब सिर्फ हिल स्टेशन नहीं, एक पर्यावरणीय चेतावनी बनता जा रहा है। यदि समय रहते प्रदूषण पर लगाम नहीं लगाई गई, तो यह स्वास्थ्य और पर्यटन दोनों के लिए घातक साबित हो सकता है। प्रशासन की सख्ती जरूरी है, लेकिन जनभागीदारी ही असली समाधान है।
“पर्यटन का आनंद लें, लेकिन प्रकृति को बीमार न करें।”