राजीव कुमार झा
इंदुपुर, पोस्ट – बड़हिया
जिला- लखीसराय (बिहार)
अरी सुंदरी !
यह धरती धनधान्य से
भरी हुई
धूप तुम्हें खेतों में
अपने पास बुलाती!
झुंड में चिड़ियां
यहां सुबह में
दाना चुगने आती
फागुन बीत गया
तुम्हें याद करता
प्रतिपल यह मन
कविता के सुंदर रस से
भीग गया!
तुम कितनी हर्षित हो
बालम की बांहों में
चैत माह में
हरे भरे पेड़ों की
छांह निराली
तुम कामदेव की घरवाली!
रतिराग छेड़ता
यह हवा का झोंका
सबके मन को भाया!
अरी सुंदरी !
भूला बिसरा गीत
प्रणय का
उसने मुझे सुनाया!
अब खूब अकेला मन है
धूप भरा यह तन है!
तुमने श्रृंगार रचाया
खुद को आज बचाया !
सुंदर कोमल पत्तों से
वन बाग सजाया
प्रेमनदी में मीठा पानी
भर आया
आज नदी में
सबका मनप्राण समाया
गरमी का मौसम आया
अब आम के मंजर
धरती पर झरते
छोटे – छोटे फल
गुच्छों में खूब लटकते !
लीची के पेड़ों पर भी
मंजर आये हैं!
अरी सुंदरी !
हम संग तुम्हारे
आज शाम में
झील किनारे आये हैं!
यहां आकाश फैला है
नाव पर बैठी
कितनी सुंदर कोई लैला है!
तुम ग्रीष्म ऋतु में
कितनी सुंदर लगती
मन की बात कभी ना कहती!
यह सुंदर पुरवाई
किसी दिशा से देर रात
यह उठकर आयी!
पानी में सूरज की
परछाईं !