राजीव कुमार झा
इंदुपुर, पोस्ट- बड़हिया
जिला- लखीसराय (बिहार)
साल के सबसे
सुंदर मौसम में
जब तुम याद
आती हो
कविता के पास
आकर
गुनगुनाती हो
सुवास जीवन का
लुटाती हो
अरी सुंदरी !
अपने बारे में
अब क्यों नहीं
कुछ भी
बताती हो
क्या अकेली
आज खुद को
तुम अब यहां
पाती हो
पेड़ नये पत्तों से
सुसज्जित हो गये!
यह नगर
खूब सुंदर हो गया!
आत्मा में
चैत की यह धूप
उतरती जा रही
हवा हर दिशा से
मौन होकर
जंगल के बीच में
अब आ रही
नदी के किनारे
सुनहरी शाम
सबको बुला रही!
अब तुम कहां
बैठी हुई हो
अरी अकेली
अब इस उम्र में
ओ रसभरी !
धूप में पुदीने सी
महकती
तुम मन के
किस कोने पर
सुबह चिड़ियों के संग
चहकती
ओ बासमती !
तुम जब पकती
खूब महकती
अरी प्रिया !
यह फूलों की घाटी
रंगबिरंगी किरनें
यहां उतरती,
तुम फूलों से लदी
अनार की पतली डाली,
यौवन की सुगंध से
नख शिख तक
गदराई!
इसी पहर
खिड़की पर आकर
आज हवा मुस्काई,
यह प्रेम का आंचल
सुंदर है!
अरी सुंदरी
अब संग तुम्हारे
सारा संसार
नीली लहरों से
घिरा समंदर है!
अब अपना घर
यही पहर है!