
उत्तराखंड । उत्तराखंड में बड़ा भूकंप आने की आशंका जताई गई है। देश के शीर्ष भूवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में कहा है कि हिमालयी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेटों के बीच घर्षण से भारी मात्रा में ऊर्जा एकत्र हो रही है, जो भविष्य में बड़े भूकंप का कारण बन सकती है। यह आकलन देहरादून में आयोजित दो महत्वपूर्ण वैज्ञानिक बैठकों में सामने आया—वाडिया संस्थान में “अंडरस्टैंडिंग हिमालयन अर्थक्वेक्स” और एफआरआई में “अर्थक्वेक रिस्क एसेसमेंट” विषय पर।
वैज्ञानिकों के अनुसार, आगामी भूकंप की तीव्रता 7.0 के आसपास हो सकती है। 4.0 तीव्रता के भूकंप से निकलने वाली ऊर्जा की तुलना में 5.0 तीव्रता के भूकंप से 32 गुना अधिक ऊर्जा निकलती है। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि बड़े भूकंप से पहले धीमे झटकों की संख्या बढ़ जाती है।
नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के अनुसार, बीते छह महीनों में राज्य में 1.8 से 3.6 तीव्रता तक के 22 भूकंप दर्ज किए गए, जिनमें चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और बागेश्वर प्रमुख रूप से प्रभावित रहे। उत्तराखंड भूकंपीय संवेदनशीलता के लिहाज से जोन-4 और जोन-5 में आता है।
वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत ने बताया कि उत्तराखंड में टेक्टोनिक प्लेटों की गति लॉक्ड हो गई है, जिससे भूकंप की संभावना बढ़ गई है। हालांकि भूकंप का समय और सटीक स्थान बताना संभव नहीं, फिर भी सरकार ने प्रदेश में दो GPS लगाए हैं, जो ऊर्जा संकेन्द्रण वाले क्षेत्रों की पहचान में सहायक होंगे।
इसके अतिरिक्त, देहरादून शहर की भूगर्भीय संरचना की जांच के लिए CSIR बेंगलुरु विस्तृत अध्ययन करेगा, ताकि जमीन की मजबूती और चट्टानों की प्रकृति का पता चल सके।
आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में 169 स्थानों पर भूकंप चेतावनी सेंसर लगाए गए हैं, जो 5 तीव्रता से अधिक के भूकंप आने पर 15–30 सेकेंड पहले चेतावनी देंगे। लोगों को ‘भूदेव’ मोबाइल एप के माध्यम से अलर्ट मिलेगा।
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि उत्तराखंड में पिछली बार बड़े भूकंप 1991 (उत्तरकाशी, 7.0 तीव्रता) और 1999 (चमोली, 6.8 तीव्रता) में आए थे, और तब से अब तक कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिससे खतरा और बढ़ गया है।