देहरादून : उत्तराखंड सरकार ने राज्याधीन सेवाओं में हड़ताल पर सख्ती दिखाते हुए अगले छह माह के लिए पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। राज्य सरकार की ओर से बुधवार को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि लोकहित को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया है। अधिसूचना सचिव कार्मिक शैलेश बगोली ने जारी की है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि उत्तर प्रदेश अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम, 1966 (जो उत्तराखंड में यथावत लागू है) की धारा 3(1) के अंतर्गत यह प्रतिबंध त्वरित प्रभाव से लागू होगा।
अधिसूचना में कहा गया है कि आदेश जारी होने की तिथि से अगले छह महीनों तक राज्य की सभी राज्याधीन सेवाओं—जिनमें विभिन्न विभागों के कर्मचारी, तकनीकी स्टाफ, प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े कर्मचारी, स्वास्थ्य, ऊर्जा, पेयजल, परिवहन और अन्य महत्वपूर्ण सेवाएँ शामिल हैं—किसी भी प्रकार की हड़ताल, कार्यबहिष्कार या सामूहिक अवकाश जैसी गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकेंगे। सरकार ने इसे जनता के जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा से संबंधित आवश्यक सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम बताया है।
हाल के दिनों में राज्य में विभिन्न कर्मचारी संगठनों द्वारा वेतनमान, सेवा नियमावली, पदोन्नति, आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण और अन्य मांगों को लेकर असंतोष के संकेत मिले थे। कुछ विभागों में चेतावनी स्वरूप सामूहिक अवकाश और कार्य बहिष्कार जैसे कदम भी देखने को मिले। ऐसे में सरकार ने स्थिति को नियंत्रण में रखने और किसी भी संभावित व्यवधान को रोकने के लिए कानूनी प्रावधानों का उपयोग करते हुए यह रोक लगाई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हड़ताल प्रतिबंध लगाने की यह कार्रवाई सरकार के लिए राहत तो देगी, लेकिन इससे कर्मचारी संगठनों में नाराजगी बढ़ सकती है। कई बार ऐसे प्रतिबंधों से वार्ता प्रक्रिया प्रभावित होती है, हालांकि सरकार का तर्क है कि आवश्यक सेवाओं की निरंतरता सर्वोपरि है और जनहित में यह निर्णय अनिवार्य था।
अधिसूचना के लागू होते ही राज्य सरकार उन सभी सेवाओं पर करीबी निगरानी रखेगी जिन्हें अत्यावश्यक माना गया है। यदि कोई कर्मचारी संगठन या कर्मचारी इस आदेश का उल्लंघन करता पाया जाता है, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है, जिसकी व्यवस्था अध्यादेश में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है।
राज्य सरकार ने संकेत दिया है कि वह कर्मचारियों की मांगों पर संवाद और समाधान की दिशा में आगे बढ़ने को तैयार है लेकिन यह भी कहा है कि किसी भी परिस्थिति में जनता को आवश्यक सेवाओं से वंचित नहीं होने दिया जाएगा। आने वाले दिनों में यह देखा जाना महत्वपूर्ण होगा कि कर्मचारी संगठन इस प्रतिबंध पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और सरकार व संगठनों के बीच वार्ता की प्रक्रिया किस दिशा में आगे बढ़ती है।
