कुछ ऐसे व्यक्ति सभी जगह होते हैं जिनसे हम असहमत हो सकते हैं, पर जिन्हें नजरअन्दाज करना मुश्किल होता है। ऐसे ही सिद्धान्त एवं मूल्यहीन व्यक्तियों की विडम्बनाओं से समाज एवं राष्ट्र परेशान है, लेकिन विडम्बना इससे बड़ी यह है कि हम ऐसे व्यक्तियों की गलतियों पर उनका बहिष्कार करने की बजाय उन्हें महानायक बनाने की कुचेष्ठा करते हैं।
उनके समर्थन में उतरते हैं, उन्हें सम्मानित किया जाता है। ऐसा ही श्रीकांत त्यागी नामक एक कथित राजनीतिक कार्यकर्त्ता के साथ त्यागी समाज ने किया, उनकी गलती पर, एक महिला के साथ बदसलूकी पर उनको चेताने, उनका सामाजिक बहिष्कार करने की बजाय उनको हीरो बनाकर प्रस्तुत किया गया है। यह एक सभ्य, संस्कारी एवं आदर्श समाज की संरचना की एक विसंगति के रूप में सामने आया है।
श्रीकांत त्यागी का मामला राजनीतिक संरक्षण में पनप रहे दादा एवं गुंडा किस्म की मानसिकता का उदाहरण है। ऐसे तथाकथित छुटभैया नेता टाइप्ड लोग समाज के लिये एक बड़ी समस्या बनते रहे हैं। ये लोग चलते व्यक्ति के साथ कदम मिलाकर नहीं चलने की अपेक्षा उसे अडंगी लगाते हैं। सांप तो काल आने पर काटता है पर ऐसे दुर्जन तो पग-पग पर काटते हैं। यह निश्चित है कि सार्वजनिक जीवन में सभी एक विचारधारा, एक शैली व एक स्वभाव के व्यक्ति नहीं होते। अतः आवश्यकता है दायित्व के प्रति ईमानदारी के साथ-साथ आपसी तालमेल व एक-दूसरे के प्रति गहरी समझ एवं आदर भाव की।
श्रीकांत त्यागी ने जो किया वह निश्चित ही अक्षम्य अपराध है, प्रश्न है कि ऐसे अपराधों के महिमामंडन के लिये समाज क्यों साथ खड़ा होता है। सात से आठ हजार के करीब लोगों ने जुटकर क्यों उसका समर्थन किया? एक बड़े मंच से श्रीकांत त्यागी पर से गुंडा अधिनियम हटाने, उसके हटाए गए अवैध कब्जे को दुरुस्त करने, उसके जब्त सामान वापस करने, कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त करने आदि की मांग उठाई गई। क्यों कुछ लोग किसी कोने में आदर्श की स्थापना होते देखकर अपने बनाए समानान्तर आदर्शों की वकालत करते हैं। यानी स्वस्थ परम्परा का मात्र अभिनय। प्रवंचना का ओछा प्रदर्शन। गलत का साथ। श्रीकांत त्यागी का चरित्र किसी से छिपा नहीं है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने गुंडा तत्वों को समाप्त करने के मिशन के अन्तर्गत श्रीकांत के अवैध कब्जे ढहा दिए और उस पर गुंडा अधिनियम लगा दिया। तब जाकर फरार रहे श्रीकांत ने समर्पण किया। उसके बाद श्रीकांत के कुछ गुंडा किस्म के समर्थक उस सोसाइटी में पहुंच गए, जहां महिला के साथ बदसलूकी की गई थी। अब जब श्रीकांत पुलिस की गिरफ्त में है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के त्यागी समुदाय के लोगों ने रविवार को महापंचायत बुला कर इसे अपनी पूरी जाति का अपमान बताया। प्रश्न है कि यह त्यागी समुदाय का अपमान क्यों और किस तरह माना जाये?
श्रीकांत जैसे अनेक असामाजिक किस्म के छुटभैए नेता राजनीतिक संरक्षण में धौंसपट्टी पर अपनी छवि चमकाते और अवैध करोबार चलाते देखे जाते हैं। राजनीतिक दलों को लंबे समय से नसीहत दी जाती रही है कि वे आपराधिक छवि वाले लोगों को अपने से दूर रखें, पर वे अपना जनाधार बढ़ाने की मंशा से इन्हें प्रश्रय देते रहते हैं। फिर इसका नतीजा यह होता है कि वही राजनीतिक दलों की समस्या बनने के साथ-साथ समाज एवं राष्ट्र की एक बड़ी चिन्ता, शर्म एवं दर्द का कारण बन जाते हैं। ऐसे आपराधिक छवि वाले व्यक्ति को ‘जाति’ का गौरव बता कर उसके समर्थन में उतरेंगे तो इससे हमारे समाज का नैतिक उत्थान तो किसी भी रूप में नहीं हो सकेगा।
यह तो शुक्रिया स्मार्टफोन का, एक ही घटना के एकाधिक वीडियो बनने और वायरल होने से समाज में नासूर की तरह फैल रहे उन अपराधों का पता दूसरों को लग जाता है। मजबूरन पुलिस प्रशासन को भी कार्रवाई करनी पड़ती है। वरना ऐसी बदतमीजियों पर लगाम लगाना आसान नहीं है। अच्छी बात है कि बुरी घटना देखकर सोशल मीडिया खुलकर आपत्ति कर रहा है और गलतियां बेनकाब होती जा रही हैं। यह अच्छी बात है। सब चाहते हैं कि हम आलोचना करें पर काम नहीं करें। हम गलतियां करें पर कोई हमारी गलतियों पर मुंह न खोले। ऐसा वर्ग आज राजनीति में बहुमत में है। ऐसे ही लोग राजनीति को भी दूषित कर रहे हैं एवं देश को भी। लोग दुर्गा बनना चाहते हैं, पर दुर्गा सामने नहीं देखना चाहते। लोग चाहते हैं भगत सिंह पैदा हों, पर पड़ोस में। कारण भगत सिंह को जवानी में शहीद होना पड़ता है। आदर्श की बात पर डंडे के बल पर, कैसी विरोधाभासी स्थिति है।
समस्या जब बहुत चिन्तनीय बन जाती है तो उसे बड़ी गंभीरता से नया मोड़ देना जरूरी है। आज राजनीति में अपराधी तत्वों की बहुलता पर विराम लगाना नये भारत एवं सशक्त भारत की प्राथमिकता होनी ही चाहिए। श्रीकांत जैसे लोग राजनेताओं के साथ मिलीभगत करके आगे बढ़ जाते है एवं बड़ी संपत्ति अर्जित कर लेते हैं, लाखों रुपए की कमाई करने लगते हैं और प्रशासन पर धौंस जमा कर अवैध गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। ऐसे लोग अपने आसपास को तनाव, आतंक एवं भय से परिव्याप्त रखते हैं। श्रीकांत भी सोसाइटी के रहवासियों को भय में रखने का प्रयास करता था और वहां अवैध कब्जा कर रखा था।
ऐसे अनेक असामाजिक किस्म के छुटभैए नेता राजनीतिक संरक्षण में धौंसपट्टी पर अपनी छवि चमकाते और अवैध करोबार चलाते देखे जाते हैं। अपराध एवं राजनीति के इस गठजोड़ को तोड़ने के व्यापक प्रयत्न किये जाते हैं, लेकिन रह-रह कर अपराधी तत्वों का राजनीति में वर्चस्व कायम हो जाता है। जब तक समाज में ऐसे लोगों को पनपने से रोकने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जाएगी, तब तक न सिर्फ सामाजिक ताने-बाने को दुरुस्त रखा जा सकता है, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी जब-तब मुश्किलें खड़ी होती रहेंगी।
इससे राष्ट्र भी सशक्त होने की बजाय कमजोर ही होता जायेगा। इसी प्रकार जो देश और समाज अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक, नैतिक एवं राष्ट्रीय परम्पराओं को भूल जाता है, वह नष्टप्रायः हो जाता है। स्थिति वह भी विस्फोटक होती है पर उसका विस्फोट दिखाई नहीं देता। वर्तमान भौतिकतावादी राजनीतिक व्यवस्था में सत्ता, सम्पदा एवं वर्चस्व के लिए जो छीना-झपटी चल रही है, उसमें संस्कृति पीछे धकेली जा रही है।