देहरादून। देहरादून में रविवार को जयकारों की गूंज के साथ श्री झंडे जी का आरोहण किया गया। इस मौके पर श्रद्धालुओं ने महाराज श्री देवेंद्र दास का आर्शीवाद भी लिया। रविवार सुबह आठ बजे महराज श्री देवेंद्र दास की अगुवाई में श्री झड़े जी को नीचे उतारा गया था। इसके बाद श्री झंडे जी की पूजा अर्चना हुई और श्री झंडे जी पर गिलाफ चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू की गई।
शाम 4 बजकर 12 मिनट पर झंडे जी का आरोहण पूर्ण हुआ। आरोहण के दौरान हजारों की संख्या में देश-विदेश से आई संगत और दूनवासियों ने झंडे जी के सामने श्रद्धा के साथ शीश नवाए और हाथ जोड़े हुए खड़े रहे। हर कोई झंडा जी के समक्ष मत्था टेकने के लिए बेताब दिखा।
झंडे जी पर शीश नवाने के लिए देश-विदेश से संगतें पहुंची थी। उत्तराखंड के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश सहित विदेशों से आई संगतें झंडे जी आरोहण की साक्षी बनी। श्री दरबार साहिब में श्रद्धालु भजन-कीर्तन के साथ ही गुरु महिमा का गुणगान करते रहे। श्रद्धालुओं ने ढोल की थाप पर जमकर नृत्य किया।
झंडे जी आरोहण का लाइव आकर्षण देखने के लिए श्री दरबार साहिब मेला समिति की ओर से इस बार एलईडी स्क्रीनों की व्यवस्था की गई थी। दरबार साहिब परिसर के अंदर स्क्रीन लगाई गई थी। इसके अलावा यूट्यूब व फेसबुक पेज पर भी मेले का लाइव प्रसारण प्रसारित हुआ। दरबार साहिब व झंडे जी के सामने का पूरा हिस्सा संगतों से पूरी तरह भरा रहा।
श्रद्धालुओं ने दरबार साहिब स्थित पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई। सुबह से ही श्रद्धालु यहां स्नान कर रहे थे। दोपहर बाद सरोवर के चारों तरफ संगतों के जुटने से यहां का नजारा भी दर्शनीय लगने लगा। साथ ही बच्चों ने भी सरोवर के स्नान का आनन्द उठाया।
बता दें कि पंजाब में जन्मे गुरु राम राय महाराज के जन्म उत्सव के तौर पर शुरू हुआ यह मेला आज भारत ही नहीं बल्कि एशिया के बड़े मेलों में शुमार है। कहा जाता है कि गुरु रामराय महाराज ने यहां डेरा डाला था।
बताया जाता है कि सिखों के सातवें गुरु हरराय महाराज के बड़े पुत्र गुरु रामराय महाराज ने अल्पायु में ही खूब ज्ञान अर्जित कर लिया था। छोटी उम्र में ही बैराग धारण कर वह संगठन के साथ भ्रमण पर निकल गए। अपने भ्रमण के दौरान वे 1675 में चैत्र कृष्ण पंचमी के दिन दून पहुंचे। माना जाता है कि उनकी प्रतिष्ठा में झंडा मेला की शुरुआत हुई जो आज एक बड़े वार्षिक समारोह का रूप ले चुका है।
बताया जाता है कि महाराज ने चारों दिशाओं में तीर चलाए और जहां तक तीर गए उतनी जमीन पर अपनी संगत को ठहरने का हुक्म दिया। गुरु रामराय महाराज के यहां डेरा डालने के कारण इसे डेरादून कहा जाने लगा, जो बाद में देहरादून हो गया।