अंबाला। अंबाला के नारायणगढ़ थाने से लगभग 15 किलोमीटर दूर गांव रतौर पिछड़े इलाकों में शुमार है। जहां सुविधाओं के नाम पर टूटी और बारिश में दरकी सड़कें हैं। गांव का नाम ऐसे हत्याकांड के नाम से सामने आएगा ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं होगा। आरोपी भूषण की अपने भाई और उसके परिवार से नफरत कोई नई नहीं, बल्कि यह कई साल से पनप रही थी। कई बार तो ग्रामीणों ने भी दोनों के बीच हो रहे झगड़े में बीच-बचाव कराया। इसके बाद कुछ दिन सब ठीक चलता, तो फिर दोनों भाई सड़क पर झगड़ा करते दिखाई देते।
इतना ही नहीं इस पारिवारिक कलह ने घर की महिलाओं को भी नहीं बख्शा। वे भी नारायणगढ़ के महिला थाने तक पहुंच गईं। पुलिस ने बार-बार समझाया मगर अंत में इस पूरे घटनाक्रम में पारिवारिक कलह ने नफरत का बीज ऐसा बोया कि बड़ा भाई ही छोटे भाई के परिवार को निगल गया। असल विवाद तो आरोपी भूषण के सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद शुरू हुआ। करीब सात साल पहले जब वह घर आया तो कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा। फिर दोनों भाइयों में छोटी-छोटी बातों पर विवाद होने लगा। घर की महिलाएं भी कई बार इस विवाद में आमने-सामने होतीं। बस यहीं से दोनों में नफरत का बीज पनपता चला गया।
छोटे-छोटे विवाद कब दो एकड़ खेत तक आ गए किसी को पता भी नहीं चला। जब विवाद बढ़ने लगे तो पिता ओम प्रकाश ने सोचा कि जमीन बांट देते हैं तो दोनों शांत हो जाएंगे। जमीन भी मौखिक तौर पर बांट दी गई। मगर विवाद फिर भी न थमा। तब दोनों भाई और माता पिता एक ही घर में रहते थे। कुछ समय पहले ही बढ़ती कलह को देखते हुए मृतक हरीश ने अपना घर भाई के घर के पीछे बना लिया। तीन कमरों का यह घर भले ही कच्चा था मगर हरीश का परिवार खुश था। ग्रामीण बताते हैं कि दोनों भाइयों में विवाद होता तो तत्काल डायल 112 पर कॉल करके बुला लेते थे फिर शांत भी हो जाते थे। खुद गांव के सरपंच नरेंद्र भी दोनों भाइयों के झगड़े में पंचायत में गए।
उन्होंने दोनों को समझाया और वह अपनी अपनी गलती मानकर शांत हो जाते। इसके बाद भूषण और हरीश में डेरे के रास्ते के लिए विवाद हो गया। यहां से नफरत और बढ़ गई। पंचायत ने फिर बीच में आकर रास्ते की समस्या का निराकरण कराया। मगर विवाद फिर भी न थमे। एक बार तो सरपंच ने नारायणगढ़ थाने में जाकर दोनों भाइयों को छुड़ाया था। यहां तक नफरत इतनी बढ़ गई कि बार-बार झगड़े होने लगे। ऐसे में गांव के लोगों ने भी दूरी बना ली। बताते हैं कि गांव से अलग डेरे में घर होने के कारण भी अब लोगों का आना-जान परिवार के साथ कम हो गया था।
सरपंच नरेंद्र बताते हैं कि करीब 20 साल पहले ओमप्रकाश अपने परिवार के साथ रतौर गांव में रहने के लिए आए थे। इस परिवार को गांव के लोग शादी समारोह में बुलाते थे। इनके बुलाने पर भी आते-जाते थे। सब खुश थे और ठीक-ठाक चल रहा था। भूषण की सेना में नौकरी लगी। बीच-बीच में भूषण आता था पूरा परिवार खुश हो जाता था। उसका इंतजार करते थे। बुजुर्ग बताते हैं कि इस दौरान दोनों भाइयों के परिवार में कोई आंतरिक कलह होती तो पता भी नहीं चलता था। मगर कभी घर की दहलीज के बाहर बात नहीं आई।
यह स्थिति एंटी सोशल व्यक्तित्व को दर्शाती है। ऐसे लोगों में बदला लेने की प्रवृत्ति अधिक होती है। सिर्फ जमीन का ही विवाद नहीं, बल्कि कोई अन्य विवाद भी उन्हें ट्रिगर कर सकता है। मनोस्थिति में ऐसा व्यक्ति सोचता है कि उसे नीचा दिखाया जा रहा है। वह किसी चीज पर अपना ही अधिकार समझता है। घर या उसके दायरे में कुछ भी बात होती है वह उस हमले को बहुत व्यक्तिगत लेता है। एक बदला लेने की भावना भी ऐसी स्थिति में जन्म ले जाती है।
-डॉ. कुलदीप सिंह, मनोचिकित्सक