
रानीखेत (अल्मोड़ा)। जिले के कई विकासखंडों में हाल ही में आयोजित बीडीसी (ब्लॉक डेवलपमेंट कमिटी) बैठकों में महिलाओं की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। विभिन्न विभागों के अधिकारी और हाल ही में चुने गए क्षेत्र पंचायत सदस्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे, लेकिन नजारा कुछ अलग ही था। कई सीटों पर महिला प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की, फिर भी चर्चा उनके पतियों की उपस्थिति की रही, न कि महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की।
विशेषज्ञ मानते हैं कि समस्या दो स्तर पर मौजूद है। पहला, समाज में महिलाओं के नेतृत्व को अभी भी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया गया। दूसरा, परिवार और समाज का दबाव महिलाओं को स्वतंत्र निर्णय लेने से रोकता है। नतीजतन, चुनी गई महिला प्रतिनिधि अक्सर पीछे रह जाती हैं और असल निर्णय उनके पति या परिवार के पुरुष सदस्य करते हैं।
हालांकि कुछ सीटों पर महिला प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखने और योजनाओं पर चर्चा करने का प्रयास किया। यह बदलाव भले ही छोटा है, लेकिन भविष्य के लिए उम्मीद जगाने वाला है। प्रशासनिक अधिकारियों का मानना है कि महिलाओं को और अधिक प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है ताकि वे खुद अपनी पहचान बना सकें।
प्रॉक्सी प्रतिनिधियों की स्थिति
बैठक के दौरान यह स्पष्ट रूप से देखा गया कि जिन सीटों पर महिलाएं चुनाव जीतती हैं, वहां असली कार्यभार उनके पतियों के हाथ में चला जाता है। कई जगह महिला सदस्य खामोश बैठी रहीं। अन्य निर्वाचित सदस्यों ने भी मजाकिया लहजे में कहा कि महिलाएं तो सिर्फ नाम के लिए चुनी गई हैं, असली काम उनके पति करेंगे।
यह स्थिति उस मूल उद्देश्य पर सवाल उठाती है जिसके तहत पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया गया था। सरकार का उद्देश्य था कि महिलाएं निचले स्तर से राजनीति में आएं, अपनी आवाज बुलंद करें और समाज तथा क्षेत्र के विकास में प्रत्यक्ष योगदान दें।
लोकतंत्र की पहली सीढ़ी पर अधूरी मौजूदगी
पंचायत लोकतंत्र की पहली सीढ़ी है। अगर यहां महिलाओं की वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित नहीं होगी, तो राजनीति में उनकी सशक्त मौजूदगी का सपना अधूरा ही रह जाएगा।