
उत्तरकाशी। उत्तरकाशी खीरगंगा से लेकर देहरादून तक नदियों के पुराने मार्ग पर लौटने से भारी तबाही हुई है। सड़क, कारोबार और आवासीय विस्तार की सुविधा के लिए नदियों और गदेरों के किनारे बस रही नई बस्तियों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सब प्राकृतिक प्रक्रियाओं की अनदेखी और अवैज्ञानिक निर्माण का नतीजा है।
आपदा का नया चेहरा: नदियां अपने पुराने रास्तों पर
उत्तरकाशी जिले में हाल में आई खीरगंगा की बाढ़ ने इलाके की तस्वीर बदल दी। कभी शांत दिखाई देने वाले गदेरे और नदियां अचानक अपने पुराने मार्ग पर लौट आईं। धराली में खीरगंगा और हर्षिल में तेलगाड गदेरे के बहाव ने दिखा दिया कि नदी का स्वभाव स्थायी नहीं होता। यही दृश्य वर्ष 2022 में देहरादून के मालदेवता क्षेत्र में भी देखने को मिला था, जब सौंग और बांदल नदियों ने अपना पुराना रास्ता पकड़ लिया और किनारे बने निर्माण कार्यों को तहस-नहस कर दिया।
पूर्वजों की सीख और आज की गलती
दून विश्वविद्यालय के नित्यानंद हिमालयन रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर डॉ. डीडी चुनियाल कहते हैं, “नदी हमेशा अपने पुराने मार्ग की तलाश करती है। हमारे पूर्वज इसे समझते थे। इसीलिए उन्होंने नदी-गदेरों से दूरी बनाकर बसावट की थी। लकड़ी और पत्थर के मकान भूकंप के हिसाब से भी सुरक्षित माने जाते थे। लेकिन आज सड़क कनेक्टिविटी और कारोबारी सुविधाओं के नाम पर हम नदियों के बिल्कुल पास निर्माण कर रहे हैं, जिसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।”
जीएसआई (Geological Survey of India) के पूर्व अपर महानिदेशक त्रिभुवन सिंह पांगती भी चेताते हैं कि नदियों के प्रवाह में किसी भी तरह का व्यवधान उनके मार्ग परिवर्तन का कारण बनता है, और अंततः वे अपने पुराने रास्ते पर लौटती हैं। वे कहते हैं, “कई बार लोग सोचते हैं कि नदी सिकुड़ गई है और अब किनारे पर मकान या दुकान बनाई जा सकती है। लेकिन जैसे ही जल स्तर बढ़ता है, नदी अपना प्राकृतिक मार्ग तलाश लेती है और तब भारी नुकसान होता है।”
भागीरथी के बहाव में बदलाव
इस साल अगस्त में आई आपदा के दौरान भागीरथी नदी के बहाव में भी बड़ा परिवर्तन दर्ज किया गया। सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता संजय राज बताते हैं कि मलबे के कारण नदी का बहाव, जो सामान्यत: बीच और बाईं ओर रहता था, वह बदलकर दाईं ओर हो गया। इससे हर्षिल क्षेत्र में नदी किनारे बस्तियों और खेतों में कटाव देखने को मिला। कटाव रोकने के लिए विभाग सुरक्षा ढांचे (प्रोटेक्शन स्ट्रक्चर्स) की योजना बना रहा है।
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों का कहना है कि तेलगाड गदेरे से आए मलबे ने भागीरथी की भू-आकृति (morphology) तक को बदल दिया है। इससे नदी के प्रवाह का रुख और गति दोनों प्रभावित हुए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड जैसे संवेदनशील हिमालयी प्रदेश में नदियों और गदेरों से सुरक्षित दूरी पर ही निर्माण कार्य होना चाहिए। यह केवल आपदा प्रबंधन का सवाल नहीं, बल्कि जीवन और जीविका दोनों से जुड़ा मुद्दा है। लेकिन लगातार बढ़ रही आबादी और सुविधाओं की लालसा में प्राकृतिक प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
उत्तरकाशी से लेकर देहरादून तक नदियों के पुराने मार्ग पर लौटने से जो तबाही हुई, वह केवल एक चेतावनी नहीं बल्कि भविष्य का आईना है। यदि निर्माण कार्यों में सावधानी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया, तो आने वाले वर्षों में आपदा का पैमाना और बड़ा होगा। पूर्वजों की सीख को फिर से याद करने और प्रकृति के नियमों के साथ तालमेल बिठाने का समय आ गया है।