
प्रीति नेगी
देहरादून (उत्तराखण्ड)
उत्तराखंड में हाल ही में हुई परीक्षा पेपर लीक की घटना ने एक बार फिर भर्ती प्रणाली की खामियों को उजागर कर दिया है और राज्यभर में जनआक्रोश फैला दिया है। पिछले दस वर्षों से बार-बार होने वाले पेपर लीक ने सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं का विश्वास तोड़ दिया है। हर साल लगभग 29 लाख युवा सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षा देते हैं, लेकिन बार-बार की लीक ने उन्हें असमंजस और निराशा में डाल दिया है। इन लगातार असफलताओं के कारण युवा पीढ़ी अब निष्पक्ष व्यवस्था पर भरोसा खोती जा रही है। पेपर लीक की यह कड़ी 2017-2018 से शुरू हुई और 2021 व 2022 में दोबारा सामने आई। सितंबर 2025 में यूकेएसएसएससी (UKSSSC) की ग्रेजुएट-स्तरीय परीक्षा का पेपर लीक होना इस सिलसिले की नई कड़ी साबित हुआ।
2021 की जांचों में यह बात सामने आई कि कई आरोपी बार-बार ऐसे मामलों में पकड़े जा चुके हैं, फिर भी उन्हें सिस्टम से बाहर नहीं किया गया। 2023 में लागू किए गए एंटी-कॉपीिंग कानून भी नाकाफी साबित हुए, जिससे यह साफ है कि आधे-अधूरे उपाय इस समस्या को हल नहीं कर सकते। बार-बार के पेपर लीक कमजोर योजना और खराब क्रियान्वयन का नतीजा हैं, जिनका खामियाजा मेहनती युवाओं को भुगतना पड़ता है। उत्तराखंड के अधिकांश युवा सरकारी नौकरी की ओर इसलिए आकर्षित होते हैं क्योंकि निजी क्षेत्र में अवसर सीमित हैं और वेतन सिर्फ 5,000 से 15,000 रुपये मासिक तक सीमित रहता है। राज्य में औद्योगिक ढांचा भी छोटा है—करीब 3,000 कम फैक्ट्रियां हैं, जो कुछ ही जिलों में केंद्रित हैं। नए उद्योगों की धीमी रफ्तार ने युवाओं के पास दो ही विकल्प छोड़े हैं—या तो राज्य परीक्षा पास कर नौकरी हासिल करें, या बेहतर अवसरों के लिए राज्य से पलायन करें।
जो युवा अपने गांव-शहर में रहकर तैयारी करते हैं, वे विभिन्न विभागों की भर्तियों पर मेहनत करते हैं और सरकारी सेवा में शामिल होने का सपना देखते हैं। जनदबाव बढ़ने पर राज्य सरकार ने कड़े कदम उठाने की घोषणा की। आरोपियों की संपत्तियां ध्वस्त की गईं, मुख्य अपराधी गिरफ्तार हुए और जिम्मेदार अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। साथ ही, पुलिस अधीक्षक की अध्यक्षता में और सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बी.एस. वर्मा की निगरानी में एक विशेष जांच दल (SIT) गठित की गई। प्रशासन ने 2023 के प्रतियोगी परीक्षा अध्यादेश के तहत सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया। हालांकि, मुख्यमंत्री द्वारा इसे “चीटिंग” कहकर छोटा मुद्दा बताने से युवाओं में और नाराजगी बढ़ गई। जांचों में यह बात सामने आई कि 40% आरोपी पहले भी ऐसे मामलों में संलिप्त रह चुके हैं, फिर भी उन्हें सिस्टम में वापस आने दिया गया। वहीं सिर्फ 60% परीक्षा केंद्र ही तकनीकी सुरक्षा से लैस हैं।
अल्पकालिक एसआईटी और बिखरी हुई जांचें किसी स्थायी समाधान तक नहीं पहुंचतीं। हर साल करीब 30 लाख अभ्यर्थी इस अस्थिर व्यवस्था से जूझते हैं, जहां निष्पक्ष परीक्षा होना एक दुर्लभ घटना बन चुकी है। बार-बार की लीक न सिर्फ अभ्यर्थियों का समय और भविष्य नष्ट करती है, बल्कि राज्य की भर्ती प्रणाली और योग्यता आधारित अवसरों में विश्वास भी खत्म कर रही है। यदि उत्तराखंड को इन दोहरावों को रोकना है, तो उसे तात्कालिक नहीं बल्कि स्थायी और कठोर कदम उठाने होंगे। परीक्षाओं को पूरी तरह डिजिटल किया जाना चाहिए—एन्क्रिप्टेड प्रश्नपत्र, समय-नियंत्रित प्रिंटिंग और सुरक्षित वितरण प्रणाली लागू करनी होगी। इसके साथ स्वतंत्र ऑडिट, कर्मचारियों का नियमित स्थानांतरण और न्यायिक निगरानी में स्थायी भर्ती प्राधिकरण बनाना जरूरी है। साथ ही, एंटी-चीटिंग कानूनों का सख्त पालन, व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा और नीति-निर्माण में सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
इन लगातार लीक घटनाओं का असर केवल परीक्षाओं तक सीमित नहीं है—यह शासन की जड़ों और युवाओं के भविष्य पर सीधा प्रहार है। जब तक सख्त नीतिगत सुधार और जवाबदेही लागू नहीं की जाती, यह कहानी बार-बार दोहराई जाएगी। टूटे सपने, गुस्से में भरे युवा और खोया हुआ विश्वास—यही इस पूरे घटनाक्रम की सबसे बड़ी त्रासदी है। उत्तराखंड को अब निर्णायक कदम उठाने होंगे ताकि भविष्य में निष्पक्ष और योग्यता-आधारित भर्ती व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।