देहरादून। राजाजी टाइगर रिजर्व के चिल्ला जोन में हाथी सफारी की नई शुरुआत केवल पर्यटन विस्तार का कदम नहीं, बल्कि उन सात हाथियों की करुण, प्रेरक और जीवनदायी कहानियों का नया अध्याय भी है, जिन्हें संघर्ष, चोट, अनाथता और मानव–वन्यजीव टकराव जैसी परिस्थितियों से बचाकर यहां नया जीवन दिया गया है। चिल्ला हाथी शिविर इस समय सात रेस्क्यू हाथियों का घर है, और इसी समूह के साथ इस वर्ष हाथी सफारी को पुनः आरंभ किया गया है, जिसका संचालन वरिष्ठ हथिनियां राधा और रंगीली कर रही हैं।
इन हाथियों के जीवन संघर्ष, उनकी सीख, पुनर्वास और आज उनके शांत, सहयोगी तथा प्रशिक्षित स्वरूप तक पहुंचने की पूरी यात्रा संरक्षण और सह–अस्तित्व की अद्भुत मिसाल पेश करती है। शिविर में सबसे वरिष्ठ राधा अब 35 वर्ष की हो चुकी है और मातृशक्ति के रूप में पूरे समूह की देखभाल करती है। दिल्ली जू से लाए जाने के बाद उसने रानी, जॉनी, सुल्तान और अब कमल जैसे कई गज शिशुओं को मां की तरह पाला है। जंगल की सैर और सफारी के दौरान मार्गदर्शन में उसका नेतृत्व सबसे प्रमुख माना जाता है।
रंगीली भी राधा के साथ 2007 में दिल्ली जू से चिल्ला लाई गई थी और अपने अनुशासित, शांत तथा संयमी व्यवहार के कारण समूह की दूसरी महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती है। वह छोटे हाथियों को सावधानी, अनुशासन और सुरक्षित व्यवहार सिखाती है। दोनों हथिनियों की जोड़ी पर्यटकों को जंगल की जैव विविधता और हाथियों के स्वभाव को समझने का अवसर प्रदान करती है।
राजा की कहानी इन सातों में सबसे मार्मिक है। वर्ष 2018 में मानव–हाथी संघर्ष का हिस्सा बनने के बाद राजा को चिल्ला लाया गया। तनाव और अस्थिरता से गुज़रने के बाद महीनों की सेवा, धैर्य और प्रशिक्षण ने उसे शांत, समझदार और भरोसेमंद बना दिया। बरसात के दिनों में जब कई रास्ते डूब जाते हैं, राजा स्टाफ को लेकर कठिन क्षेत्रों में गश्त करता है और कई बार जंगली झुंडों को सुरक्षित रास्ता भी दिखाता है।
रानी की कहानी भी उतनी ही संवेदनशील है। तीन महीने की आयु में जब वह गंगा की धारा में बहती मिली, उसे बचाकर चिल्ला लाया गया और राधा ने उसे अपनी संतान की तरह पाला। आज वह चंचल, सौम्य और आदेशों को तुरंत समझने वाली युवा हथिनी है, जो मानसून गश्ती में सक्रिय भूमिका निभाती है।
जॉनी और सुल्तान दो अनाथ हाथी हैं—एक मोतीचूर क्षेत्र से बचाया गया और दूसरा पहाड़ी से गिरने के बाद अपनी मां को खो बैठा। दोनों अब भाई की तरह साथ रहते हैं, साथ खेलते–दौड़ते हैं और कैंप के अन्य हाथियों के लिए जंगल से चारा लाने में मदद करते हैं।
सबसे छोटा सदस्य कमल वर्ष 2022 में रवासन नदी से बचाया गया था। एक महीने की उम्र में लाए गए इस गज शिशु को राधा ने पूरी तरह अपना लिया है और वह आज भी उसके साये से दूर नहीं रहता। अब कमल धीरे-धीरे खेलना, आदेश समझना और छोटी जंगल यात्राएँ सीख रहा है।
राजाजी टाइगर रिजर्व के अधिकारियों के अनुसार चिल्ला हाथी शिविर इस बात का जीवंत उदाहरण है कि यदि मनुष्य संवेदना और धैर्य के साथ कार्य करे, तो वन्यजीवों और मनुष्यों के बीच एक संतुलित, सुरक्षित और सम्मानजनक संबंध कायम हो सकता है। हाथी सफारी इसी विचार को आगे बढ़ाती है कि संरक्षण और विकास दोनों साथ चल सकते हैं, और प्रकृति का सम्मान ही भविष्य की सबसे मजबूत नींव है।
मानसून के समय जब सड़कें डूब जाती हैं और सामान्य वाहनों से गश्त असंभव हो जाती है, तब यही हाथी स्टाफ को लेकर विभिन्न क्षेत्रों में सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। उनकी चपलता, समझदारी और परंपरागत प्रशिक्षण प्रणाली से ही बरसाती दिनों में जंगल की सुरक्षा व्यवस्था मजबूती से संचालित होती है।
