राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के तीन साल से चल रहे अध्ययन में करीब 1200 से अधिक जलस्रोतों के परीक्षण के बाद यह तथ्य सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, पर्वतीय इलाकों में पेयजल आपूर्ति का मुख्य जरिया प्राकृतिक जलस्रोत ही होते हैं।
इन पर ही प्रदेश की अधिकतर पेयजल पंपिंग योजनाएं बनाई गई हैं। पर स्रोतों में पानी कम होने से भविष्य में पर्वतीय इलाकों में जल संकट बढ़ने की पूरी आशंका है। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड के प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी की निकासी में पांच से लेकर 80 फीसदी तक की गिरावट आई है। इसके अलावा पानी की गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है।
गुणवत्ता खराब हुई तो लोगों में कई तरह की बीमारियां फैलने का भी डर है। इसलिए पानी की गुणवत्ता और जांच के प्रति भी लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है। यूकॉस्ट के प्रदेश कोऑर्डिनेटर डॉ. प्रशांत सिंह के अनुसार जल संस्थान के साथ मिलकर टिहरी के सेलूपानी में एक पूरी तरह सूख चुके पेयजल स्रोत को दोबारा जीवित करने की योजना पर काम हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, जलस्रोतों से पानी की निकासी में कमी के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ ही पहाड़ों में अनियोजित रूप से लगातार बन रही सड़कें हैं। पहाड़ों में हो रहे विस्फोटकों के प्रयोग से प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी की निकासी पर सबसे बुरा असर पड़ा है। डॉ. प्रशांत सिंह के अनुसार ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव व चीड़ के जंगलों का अधिक फैलाव भी जलसंकट का प्रमुख कारण है।