प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
आज की नारी दोराहे पर खड़ी है । मानते हैं कि नारी चाहती है कि वो पढ़ी-लिखी है तो वो अपने हुनर को व्यर्थ ना गँवाए, यूँ चार दीवारी में कैद रह कर अपनी ज़िन्दगी , अपनी खुशियों का गला ना घोंटे , लेकिन ये शुरुआत कहाँ से हुई ?? ये शुरूआत हुई मर्द के स्वार्थ से , जब आज की मँहगाई ने मर्द की कमर तोड़ दी ,तब उसने नारी का सहारा लेना उचित माना ।
एक पँथ दो काज एक तो नारी को आगे करके बढपन्न दिखाया , दूसरा हाथ को हाथ का सहारा मिला। वर्ना आज भी बहुत सी पढ़ी-लिखी औरतें घर के चूल्हे-चौके में ही अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं। आज भी बहुत सी औरते पर्दे में रहती है ( मैं बुर्के की बात नहीं कर रही ) मैंने खुद देखा है औरतों को पर्दा करते हुए।
पढ़ी -लिखी औरतों को सिर्फ घर तक ही सिमित रहते हुए। अगर नारी को आज पुरूष की बराबरी मिल रही है तो एक नारी क्यों नहीं रात को अकेले में कहीं जाॅब हो या कहीं भी नहीं जा सकती , क्यों हमें एक छोटी मासेम बच्ची ( जो 2,4, या 6 महीने भर की होती है ) ऊसकी भी निगरानी करनी पढ़ती है ।
कुछ लोग ये कहते हैं कि आज की स्त्री कपड़े पूरे नहीं पहनती । कहाँ कमी है कपड़ो में अगर किसी को स्कर्ट में नारी की टाँगे नज़र आती है तो क्या साड़ी में कुछ नज़र नहीं आता , वो तो एक भारतीय परिधान है । अगर किसी को नारी का वक्ष सैक्सी नज़र आता है , उसे लुभाता है ,तो उसे अपनी माँ मे एसा कुछ क्यों नज़र नहीं आता ??
क्योंकि वो अपनी माँ या अपनी बहन है, दूसरे की माँ या बहन कोई मायने नहीं रखती। सारी बात हमारी सोच पर निर्भर करती है । आज की नारी की स्थिति वही है जो सदियों पहले थी ,जैसे द्रोपदी को जुए में हार दिया , क्या द्रौपदी से पूछा किसी ने ?? नहीं ! अपनी जागीर समझा ना।
आज भी मर्द औरत को अपनी जागीर ही समझता है । बहुत कम ऐसा होता है कि मर्द औरत को अपने बराबर समझे । लेकिन कहीं ऐसा भी है कि नारी अपने लिए मिले हक का नाजायज़ फायदा भी उठाती हैं ।जब वो फ्रस्टेड हो जाती है तो वो मिले हक तो पूरी तरह से miss use भी करती है।
ये भी गल्त हैं । अगर कहीं दोनों पति-पत्नि जाॅब करते है तो ज़यादातर औरत ही सुबह घर के सारे काम निपटा कर जाती है ( मै सब की बात नहीं कर रही ,अक्सर घरों में होता है ) क्या पुरूष का फर्ज़ नहीं कि वो भी बराबर का साथ दें ।
अगर कहीं किसी को मेरी बातों से ठेस पहुँची हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ ।🙏