
दून । सोमवार-मंगलवार की रात बादल फटने से 17 मौतें, कई लोग लापता और दर्जनों घर खतरे में आ गए। सहस्त्रधारा नदी के किनारे बसे लोगों के लिए यह रात एक भयावह अनुभव रही।
लोग अपने घरों को नदी के दूसरे छोर से निहार रहे हैं—न घर में रहने का साहस है, न छोड़ने का संतोष। हर चेहरा इस डर से भरा है कि अगर नदी का पानी और बढ़ा, तो उनकी जीवनभर की कमाई मिट्टी में समा जाएगी। पुष्पा, अंशिका, मोतीलाल वर्मा और नीरज कुमार जैसे आपदा पीड़ित अपने घरों से जरूरी दस्तावेज़ और गहने ही निकाल पाए हैं। बाकी सामान घर पर ही पड़ा है, और वे तब से खुले आसमान के नीचे बैठे हैं।
उनका कहना है कि बीते 25 वर्षों में ऐसा कुदरती कहर उन्होंने पहली बार देखा है। रात को एक बजे और फिर साढ़े चार बजे बादल फटे, जिससे मलबा और पत्थर बहकर घरों से टकराने लगे। प्रशासन ने तुरंत घर खाली कराने के निर्देश दिए, और तभी से लोग अपने ही घरों से विस्थापित होकर बाहर हैं।
इस पूरी त्रासदी का सबसे भयावह पहलू यह है कि लोग जान बचाने के साथ-साथ अपनी पूंजी और भविष्य को बचाने की दोहरी चिंता से जूझ रहे हैं। दुकानों और मकानों पर मंडराता खतरा उनकी आंखों से छलकते आंसुओं में साफ दिखता है।