अफज़ाल राणा (वरिष्ठ पत्रकार )
देहरादून: उत्तराखंड में हाल ही में एस आई आर ( विशेष गहन पुनरीक्षण) को लेकर जिस तरह हलचल, विरोध, भ्रम और दबाव देखने को मिल रहा है, वह यह संकेत देता है कि यह प्रक्रिया केवल मतदाता सूची का अपडेट भर नहीं, बल्कि लोगों के अधिकार, पहचान और भविष्य से जुड़ा महत्वपूर्ण विषय बन चुकी है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाता सूची नागरिक की राजनीतिक पहचान का आधिकारिक प्रमाण होती है। इससे हटना या गलत तरीके से परिवर्तन होना न केवल मतदान अधिकार छीनता है, बल्कि सामाजिक और कानूनी स्तर पर भी व्यक्ति को अनेक कठिनाइयों में डाल देता है। यही कारण है कि एस आई आर को लेकर लोगों के बीच असुरक्षा और आंदोलन जैसी स्थिति देखने को मिल रही है।
एस आई आर के दौरान चुनाव आयोग मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर सुधार और संशोधन करता है—पुराने नामों की जांच, मृत व्यक्तियों का नाम हटाना, नए पात्र मतदाताओं को जोड़ना, गलत प्रविष्टियों को सुधारना, और पते परिवर्तन के मामलों की पुष्टि करना इस प्रक्रिया के मूल भाग होते हैं। उद्देश्य पारदर्शिता, सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है, ताकि मतदान के समय फर्जीवाड़ा और डुप्लीकेसी जैसी समस्याएं सामने न आएं। लेकिन यही प्रक्रिया तब विवाद का कारण बन जाती है जब जनता के बीच सही जानकारी नहीं पहुंच पाती या स्थानीय स्तर पर अधिकारियों से संवाद कमजोर हो जाता है।
कई इलाकों में शिकायतें सामने आ रही हैं कि लोगों के नाम बिना जांच के काट दिए जा रहे हैं, बूथ लेवल अधिकारियों की लापरवाही से कई पुराने मतदाता सूची से गायब हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पता बदलने या विधानसभा बदलने के मामलों में 2003, 2006 या विभाजन के बाद के पुराने EPIC नंबर मिलान करने में कठिनाई आ रही है। जिन परिवारों में वर्षों से मतदाता सूची में नाम थे, वे भी दस्तावेज़ों का बार-बार सत्यापन कराने पर मजबूर हैं। इससे लोगों में संशय बढ़ा है कि कहीं एस आई आर की आड़ में उनका मतदान अधिकार प्रभावित न हो जाए। यही डर विरोध और सवालों को जन्म देता है।
एक और बड़ी समस्या यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और तकनीकी व्यवस्था दोनों की कमी है। इलेक्टोरल रोल की ऑनलाइन जानकारी ज्यादातर लोगों के लिए अभी भी जटिल है। बूथ लेवल अधिकारी समय पर घर-घर नहीं पहुंचते और जिनके नाम गायब हो जाते हैं, उन्हें चुनाव के बिल्कुल करीब जाकर ही भनक लगती है। चुनाव आयोग का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना है, लेकिन यह तभी सार्थक हो सकता है जब प्रक्रिया सुविधाजनक, सरल और पारदर्शी हो। यदि मेहनत और जागरूकता से किए गए सुधार जनता के लिए तनाव और भय का कारण बन जाएं, तो यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
एस आई आर के दौरान सबसे अधिक आक्रोश उन लोगों में है जिनका मतदाता पहचान पत्र वर्षों से वैध है और उनमें EPIC नंबर अभी भी वही है, लेकिन फिर भी उनके नामों को सूची में खोजने में कठिनाइयाँ सामने आ रही हैं। परिसीमन के बाद विधानसभा बदल गई, वार्ड बदल गए, बूथों के पते बदले, लेकिन मतदाता पहचान अपडेट नहीं हो पाया—यह प्रशासनिक खामियों का परिणाम है, जनता की गलती नहीं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि अगर सरकार और आयोग ने ही विभाजन और परिसीमन कराया था तो उसकी जिम्मेदारी भी वही लेनी चाहिए। नाम गलत जगह दिखने या गायब होने का बोझ आम नागरिक पर डाल देना उचित नहीं है।
इसी वजह से कई परिवार, बुजुर्ग और नौकरी-पेशा लोग इस दुविधा में हैं कि कितना समय काग़ज़ी कार्रवाई में लगेगा, कितने दस्तावेज़ फिर से लगाने पड़ेंगे और क्या चुनाव तक उनका नाम वापस सूची में जुड़ पाएगा या नहीं। यह तनाव पूरी राज्य भर में दिखाई दे रहा है। एस आई आर पर उठ रहा शोर इसलिए भी उचित माना जा रहा है क्योंकि यह मुद्दा मात्र सत्ता या विपक्ष से जुड़ा राजनीतिक मामला नहीं, बल्कि हर नागरिक के संवैधानिक अधिकार—मतदान—से सीधे जुड़ा है। जब आम जनता को अपनी पहचान साबित करने के लिए बार-बार संघर्ष करना पड़े तो प्रक्रिया पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
हकीकत यही है कि एस आई आर लोकतांत्रिक और पारदर्शी उद्देश्य से शुरू तो हुआ है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में सुधार की अत्यधिक जरूरत है। अधिकारियों के प्रशिक्षण, जनता को जानकारी देने के बेहतर माध्यम, शिकायतों का तुरंत समाधान, और डिजिटल प्लेटफॉर्म को आसान और भरोसेमंद बनाने से इस तनाव को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। चुनाव केवल मतदान के दिन नहीं होता—इसके महीनों पहले शुरू हो जाता है, और मतदाता सूची उसकी रीढ़ है। यदि वही सूची विवाद, असमंजस और असुरक्षा से भरी हो, तो लोकतंत्र के लिए यह चिंताजनक संकेत है।
इसलिए एस आई आर पर शोर किसी राजनीतिक हंगामे का परिणाम नहीं, बल्कि जनता की अपने अधिकारों की सुरक्षा की बेचैनी है। यह आवाज़ इसलिए उठ रही है ताकि कोई भी पात्र मतदाता मतदान अधिकार से वंचित न हो जाए। लोकतांत्रिक व्यवस्था का स्वास्थ्य इसी में है कि मतदाता पहचाना जाए, सम्मानित किया जाए, और वोट देने का उसका अधिकार बिना कठिनाइयों के सुरक्षित रहे।

