(सलीम रज़ा,पत्रकार)
पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती आधुनिक भारत की उस अद्भुत यात्रा का स्मरण है, जिसने एक उपनिवेशित, बिखरे और आर्थिक रूप से कमजोर देश को एक लोकतांत्रिक, आत्मविश्वासी और आधुनिक राष्ट्र बनने की दिशा दिखायी। नेहरू केवल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ही नहीं थे, बल्कि वे एक ऐसे विचारक, दार्शनिक और दूरदर्शी नेता थे, जिनकी सोच ने स्वतंत्र भारत का चरित्र तय किया। उनका जीवन और नेतृत्व यह दर्शाता है कि कैसे सही दिशा, स्पष्ट दृष्टि और मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण राजनीति किसी समाज की नियति बदल सकती है।
14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में जन्मे नेहरू एक समृद्ध परिवार से आए, लेकिन उनका जीवन आराम और सीमित दृष्टि तक सीमित नहीं रहा। इंग्लैंड से शिक्षा प्राप्त करने के बाद युवा नेहरू महात्मा गांधी के संपर्क में आए और जीवनभर के लिए राष्ट्र सेवा के पथ पर अग्रसर हो गए। स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने अनेक बार जेल यात्राएँ कीं, लेकिन उनका आत्मविश्वास कभी नहीं डगमगाया। उनके भीतर एक ओर वैज्ञानिक और तर्कशील मन था तो दूसरी ओर देश के प्रति गहरी भावनात्मक निष्ठा और मानवीय संवेदनाएँ। यही मिश्रण उन्हें अपने समय के सबसे प्रभावशाली नेताओं की श्रेणी में खड़ा करता है।
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू का कार्यकाल अत्यंत चुनौतीपूर्ण था। देश विभाजन के दर्द, शरणार्थियों का पुनर्वास, आर्थिक पिछड़ापन, शिक्षा और स्वास्थ्य की कमजोर स्थिति, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता—ये सब सुनिश्चित रूप से किसी भी नए राष्ट्र के सामने पहाड़ जैसे प्रश्न थे। नेहरू ने इन चुनौतियों से घबराने के बजाय उन्हें अवसर के रूप में लिया। उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की जो वैज्ञानिक सोच पर चले, शिक्षा में आगे बढ़े, सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण हो और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके।
नेहरू की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक भारत में मजबूत लोकतंत्र की स्थापना थी। उन्होंने बहुदलीय लोकतंत्र, स्वतंत्र न्यायपालिका, प्रशासनिक ढांचे और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को अत्यधिक महत्व दिया। उनके नेतृत्व में 1952 में भारत का पहला आम चुनाव हुआ, जो उस समय विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक प्रयोग था। यह केवल चुनाव नहीं था, बल्कि भारत की जनता को यह विश्वास दिलाने का प्रयास था कि यह राष्ट्र जनता के ही हाथों में है।
आर्थिक विकास के क्षेत्र में नेहरू ने मॉडल तैयार करते समय न तो पूँजीवादी व्यवस्था का अंधानुकरण किया और न ही पूर्ण समाजवादी ढांचे को अपनाया। उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल चुना, जिसमें भारी उद्योगों, सार्वजनिक क्षेत्र और निजी उद्यम—तीनों को समुचित भूमिका दी गयी। भिलाई, दुर्गापुर और राउरकेला जैसे इस्पात संयंत्र, बड़े बांध, सिंचाई परियोजनाएँ, खाद कारखाने, मशीन टूल उद्योग और वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ आज भी उनके दृष्टिकोण की जीती-जागती मिसाल हैं। नेहरू का विश्वास था कि बड़े उद्योग और विज्ञान आधारित प्रगति ही भारत को गरीबी से मुक्त कर सकते हैं।
विज्ञान और तकनीकी विकास के क्षेत्र में उनका योगदान असाधारण है। उन्होंने आईआईटी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, अंतरिक्ष अनुसंधान के शुरुआती कार्यक्रम, ऑयल एंड नेचुरल गैस कमीशन, परमाणु ऊर्जा आयोग और विभिन्न शोध संस्थानों की शुरुआत को समर्थन दिया। वे मानते थे कि “विज्ञान का भविष्य ही भारत का भविष्य है।” इसी कारण उन्होंने शिक्षा प्रणाली में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तार्किकता और प्रयोगवाद पर बल दिया।
नेहरू की राजनीतिक सोच विश्व दृष्टि से प्रेरित थी। उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी, जो आगे चलकर तीसरी दुनिया के देशों का प्रमुख कूटनीतिक मंच बना। नेहरू की यह सोच कि भारत किसी भी महाशक्ति का अनुसरण किए बिना स्वतंत्र निर्णय लेगा, विश्व राजनीति में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाली साबित हुई। वे शांति, वैश्विक सहयोग और मानवीय अधिकारों के समर्थक थे।
सामाजिक दृष्टि से नेहरू का भारत एक ऐसा राष्ट्र था जहाँ हर नागरिक को समान अवसर मिले। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, बाल कल्याण, वैज्ञानिक कृषि, और सामाजिक सुधार कार्यक्रमों पर ज़ोर दिया। बच्चों के प्रति उनके प्रेम और उम्मीदों ने ही 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में स्थापित किया। नेहरू का विश्वास था कि “आज के बच्चे कल का भारत गढ़ेंगे,” इसलिए बच्चों में स्वतंत्र सोच, जिज्ञासा और राष्ट्रप्रेम का विकास आवश्यक है।
नेहरू का साहित्यिक योगदान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। उनकी पुस्तक “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” केवल इतिहास का वर्णन नहीं बल्कि भारत की आत्मा को समझने का एक दार्शनिक प्रयास है। “ग्लिम्प्सेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री” और “लेटर्स फ्रॉम ए यंग इंडियन” उनकी व्यापक सोच, मानवीय दृष्टिकोण और दुनिया को समझने की क्षमता को दर्शाती हैं।
उनका प्रधानमंत्रित्वकाल विवादों और चुनौतियों से रहित नहीं था, जैसा कि किसी भी बड़े नेता के साथ होता है। चीन के साथ 1962 का युद्ध एक गहरा झटका था, लेकिन इस घटना ने भारत को सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र में अधिक आत्मनिर्भर बनने का रास्ता दिखाया। आलोचनाओं के बावजूद नेहरू का योगदान इतना व्यापक है कि उनकी भूमिका को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं है।
पंडित नेहरू की जयंती केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व को याद करने का अवसर भर नहीं है, बल्कि यह उन मूल्यों—लोकतंत्र, वैज्ञानिक सोच, शांति, समानता और आधुनिकता—का उत्सव है, जिन पर आज का भारत खड़ा है। उनका जीवन यह सिखाता है कि राष्ट्र निर्माण केवल योजनाओं से नहीं, बल्कि दूरदृष्टि, सहिष्णुता, समर्पण और आदर्शवाद से होता है। नेहरू ने एक ऐसे भारत की परिकल्पना की थी जहाँ हर नागरिक को उन्नति का अवसर मिले और जहाँ ज्ञान, विज्ञान और स्वतंत्र सोच को सर्वोच्च स्थान दिया जाए।
आज जब हम उनकी जयंती मनाते हैं, तो यह केवल उन्हें श्रद्धांजलि देना नहीं बल्कि यह स्वीकार करना भी है कि भारत की लोकतांत्रिक परंपराएँ, वैज्ञानिक उपलब्धियाँ और वैश्विक प्रतिष्ठा का बड़ा हिस्सा उनके सपनों और परिश्रम की देन है।


